राकेश दुबे@प्रतिदिन। कहने को मध्यप्रदेश में सामन्तवाद का युग नहीं है, लेकिन मध्यप्रदेश में ‘राजा’ और “महाराजा” के अपने अर्थ हैं | जब भी इन शब्दों का अर्थ निकाला जाता है तो ‘राजा’ से अभिप्रेत दिग्विजय सिंह होता है और “महाराजा” से अर्थ ज्योतिरादित्य सिंधिया होता है |
कांग्रेस में इन दोनों शब्दों का चलन इस हद तक है कि कुछ पूर्व और वर्तमान विधायक अपने इन दोनों नेताओं के मूल नाम तक उच्चारण करने से डरते हैं या उन्हें मूल नाम मालूम नहीं है | ख़ैर......!
राजा चुनावी नक्शे से गायब हैं | अपने को खुले आम वे डूबता सूरज मान चुके हैं | संदेह है कि उन्होंने उस दिन या उसके बाद यह वाक्य बिना किसी राजनीतिक उद्देश्य के कहा होगा | वैसे राजा सदाशयता पूर्वक बात करने और निभाने के आदी है | यह अलग बात है कि उनके वाक्यों के उद्देश्य की व्याख्या भी वे अपनी तर्ज़ पर करते हैं | उन्होंने प्रदेश में अपनी हार के बाद जो घोषणा की थी उसे निभाया भी, यह उनका प्रदेश के प्रति सदाशयतापूर्ण व्यवहार था और अब यही घोषणा उनके लिए भारी हो रही है|
“महाराजा” और कमलनाथ की युति अपने प्रभाव से दिल्ली दरबार को इस बात पर सहमत करने में कामयाब हो गई है कि राजा को आगे रखकर चुनाव नहीं जीता जा सकता और छोटे राजा अर्थात लक्ष्मण सिंह तो अभी अभी भाजपा से लौटे हैं | राजा ने इसके बाद अपनी पूरी शक्ति युवराज़ पर लगा दी और टिकट मिलने से पहले ही राघौगढ़ से फार्म भरवा दिया| राजा के कांग्रेसी मित्र इसे भी दांव मान रहे हैं | उनका मानना है की उपेक्षा के माहौल में युवराज़ के बहाने ही उपस्थिति सही | दांव प्रदेश में सबसे अधिक मत प्राप्ति का है, देखिये युवराज़ जयवर्धन कहाँ ठहरते हैं?
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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