राकेश दुबे@प्रतिदिन। कितनी अजीब बात है कि भारत में महापुरुषों का स्मरण सिर्फ स्वार्थ साधने के लिए होता है| उने कृतित्व और व्यक्तित्व का इस्तेमाल राष्ट्र को दिशा देने के लिए नहीं होता, बल्कि उनके बहाने कैसे सत्ता और साधन जुटाए जाये, कैसे वोट बैंक को कायम रखा जाये के लिए होता है |
देश में कई संस्थान और स्मारक इसी तरह चल रहे हैं और उनका इस्तेमाल लगभग ऐसे ही किया जा रहा है और भविष्य भी ऐसा ही दिखता है |
इन दिनों नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई सरदार पटेल के स्मारक निर्माण मुहिम पर माहौल गर्म है | देश के बड़े राजनीतिक दल इसी बात को लेकर दो धड़ों में बंट गये हैं | सरदार पटेल से राजनीतिक विचार धारा और राजनीतिक सामंजस्य की खोज के नये-नये आयाम सामने आ रहे हैं | कुछ दिन के बाद “गाँधी” उपनाम की तरह “पटेल” उपनाम भी प्रयोग होने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये | ख़ैर !
वर्तमान में सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण, नरेंद्र मोदी का मौलिक सोच नहीं है | यह मौलिक सोच राजग सरकार था | सत्ता में आने के बाद संप्रग सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था | मूलतः सांसद त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी की अध्यक्षता में बनी एक समिति को इस बारे में एक रिपोर्ट देनी थी की पटेल स्मारक कैसे बने | इस समिति के कुछ सदस्य दुनिया में नहीं हैं, पर रिपोर्ट जिंदा है, जिस पर नरेंद्र मोदी ने प्रतिमा की बात को धार दी तो केंद्र सरकार ने श्रेय लूटने के लिए अहमदाबाद में स्मारक का शिलान्यास कर डाला | अब संघर्ष कांग्रेस और भाजपा के बीच पटेल से अपने को निकट बताने का है | नेहरु और पटेल के मतभेद पर विभिन्न मत हैं, पर दोनों ने कभी ऐसा न सोचा होगा, जैसा दोनों के साथ अभी हो रहा है |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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