उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। ये तो हद हो गई, आसाराम के खिलाफ खबरों ने अपनी हदें पार कर दीं हैं। कुछ मीडिया ऐजेंसियां तो ऐसे पीछे पड़ीं हैं मानो देशभर में कुछ और महत्वपूर्ण रहा ही नहीं, इनका बस चले तो ये खुद आसाराम को उम्रकैद सुना डालें।
मैं आसाराम का भक्त नहीं हूं, समर्थक भी नहीं हूं और ना ही मेरे पास यह विश्वास करने का कोई कारण है कि आसाराम या उसका बेटा चरित्रहीन नहीं हैं, परंतु हर गुनाह की एक सजा मुकर्रर है, समाचार माध्यमों के अपने दायरे हैं। हम लगातार आसाराम के खिलाफ चल रही तमाम गतिविधियों का प्रकाशन प्रमुखता से करते आए हैं, परंतु आज तो जैसे हृदय तिलमिला उठा। न्यूज ऐजेंसियों ने खबर भेजी है 'आसाराम को होगी उम्रकैद!' उन्होंने बड़ी चतुराई से '!' का प्रयोग कर लिया। इसका तात्पर्य है हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती परंतु आम आदमी इस '!' को क्या जाने।
शब्दों के तीर कुछ इस तरह से चलाए गए कि पब्लिक में यह संदेश चला जाए कि आसाराम तो गए हमेशा के लिए जेल अब उसका समर्थन या सहयोग करने का कोई औचित्य नहीं रह गया। यह एक प्रकार से आरोपित व्यक्ति तक पहुंच रही मदद को रोकने का प्रयास है परंतु इतनी चतुराई से किया गया है कि आप हमलावरों को कटघरे में भी खड़ा नहीं कर सकते। यह पत्रकारिता का दुरुपयोग है और कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
आसाराम एक आरोपी है, लगभग 3 करोड़ लोगों द्वारा स्वीकार्य संत से इस तरह के कृत्यों की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह जगहंसाई का विषय भी है सो हो भी रही है। लोग इस मामले में ताजा जानकारियां चाहते हैं और मीडिया को देना भी चाहिए परंतु चार्जशीट पेश हुई है तो 'चार्जशीट पेश हुई' ही बताया जाना चाहिए। इसके बाद अभी लम्बी प्रक्रिया बाकी है। प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद न्यायालय फैसला सुनाएगा। सजा हो भी सकती है नहीं भी हो सकती। उम्रकैद भी हो सकती है या माफी भी मिल सकती है।
फिलहाल कुछ भी हो सकता है, समाचार सिर्फ इतना है कि आसाराम के खिलाफ चार्जशीट पेश हो गई है। इसे इस तरह के कहना अन्याय होगा कि 'आसाराम को होगी उम्रकैद!' यह मीडिया का उतावला पन है या फिर कोई गहरी साजिश। भारतीय प्रेस परिषद को इस मामले को स्वत: संज्ञान में लेकर निर्देश जारी करने चाहिए। ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आवे।