भोपाल। खबर ताजा नहीं है, कोई साल भर पुरानी है परंतु जब जब चुनाव आते हैं कुछ किस्से बरबस ही याद हो आते हैं। ये किस्सा उत्तरप्रदेश के श्रावस्ती जिले की इकौना सीट से दो बार विधायक रहे भाजपा नेता का है। जिन्होंने अपनी भैंस बेचकर चुनाव लड़ा और जीते।
भाजपा जो पहले जनसंघ हुआ करती थी के नेता भगवती प्रसाद उत्तरप्रदेश के श्रावस्ती जिले की इकौना विधानसभा के नेता थे। वो इतने सरल और सहज व्यक्ति थे कि दूसरी पार्टियों के लीडर्स भी उनका सम्मान किया करते थे। 1967 में जब जनसंघ का कोई खास जनाधार नहीं था तब उन्हें इकौना विधानसभा से प्रत्याशी बनाया गया। पहले प्रत्याशियों को पार्टियों की ओर से खर्चा नहीं मिलता था सो भगवती प्रसाद जी ने अपनी भैंस 1800 रुपए में बेच दी। चुनाव प्रचार पर कुल 1600 रुपए खर्च किए और चुनाव जीत गए।
1969 में फिर चुनाव हुए। उन्हें फिर से प्रत्याशी बनाया गया और इस बार उन्होंने चुनाव प्रचार पर 400 रुपए ज्यादा, कुल 2000 रुपए खर्च किए और फिर से जीत गए, लेकिन इसके बाद उन्हें पार्टी ने अवसर नहीं दिया।
सादा जीवन वाले इस अत्यंत लोकप्रिय नेता ने राजनीति ही छोड़ दी, चाय का ठेला लगा लिया। बाद में बीमार हो गए। काली कमाई तो थी नहीं, राजनीति छोड़ दी थी सो इलाज ही नहीं हो पाया। गरीबी और मुखमरी के चलते अंतत: उनकी मौत हो गई। उनका अंतिम संस्कार भी पड़ौसियों ने चंदा करके किया।
कहने का लव्वोलुआब यह कि भगवती प्रसाद जी जैसे नेताओं के कारण ही संघ, जनसंघ और भाजपा का सम्मान हुआ करता था और जिस जमाने में गोपीनाथ मुंडे अपने चुनाव पर 8 करोड़ खर्च करते थे, तब भगवती प्रसाद जी 1600 रुपए में ही जीत जाया करते थे। बाद में संगठन ने अपनी नींव के पत्थरों को ही बिसरा दिया। वो तड़पते हुए मर गए। शायद यही कारण है कि यूपी में भाजपा पूरी तरह से सिमटकर रह गई। क्योंकि अब वहां भगवती प्रसाद जी जैसे लोकप्रिय नेता भाजपा मेें नहीं रहे।
क्या आपको अपने मध्यप्रदेश में याद आता है ऐसा कोई किस्सा, यदि हां तो लिख डालिए और हमें मेल कर दीजिए। जब बात लोकतंत्र की हो रही है तो राजनीति में शुचिता के प्रसंग भी छेड़ ही दिए जाने चाहिए। क्या पता कब किसको सद्बबुद्धि आ जाए। शायद ऐसे प्रसंग पढ़कर कहीं कोई नेता सुधर जाए।
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