भोपाल। कांग्रेस पार्टी द्वारा जारी की गई विधानसभा उम्मीदवारों की तीसरी सूची में उपाध्यक्ष राहुल गांधी का टिकट फार्मूला एक बार फिर पूरी तरह से ध्वस्त नजर आया। इसमें एक ही परिवार के दो लोगों को टिकटें भी मिली और दस हजार से अधिक वोटों से पिछला चुनाव हारने वालों को दोबारा मौके भी मिले हैं।
दतिया से 2008 में बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र भारती को टिकट मिली, तो परिवारवाद भी खूब चला। दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बुधवार को चली लंबी बैठक इसलिए हो रही थी,कि विवादित सीटों पर समाधान निकाला जाए। लेकिन टिकटों का वितरण देखने के बाद राहुल गांधी की पूरी एक्सरसाईज खोदा पहाड़ और निकली चुहिया जैसी लग रही है। क्योंकि जिस प्रकार से जिताऊ चेहरों के लिए कई चरणों में सर्वे करवाए गए,बड़ी-बड़ी बातें कहीं गर्इं,परिणाम उससे उलट आए हैं।
शुजालपुर से पिछला चुनाव दस हजार वोटों से हारने वाले सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जोशी को दूसरी बार टिकट दी गई है,तो सांसद सज्जन वर्मा अपने बेटे को टिकट नहीं दिला पाए लेकिन सोनकच्छ से बुरी तरह चुनाव हारने वाले उनके भाई अर्जुन वर्मा को पार्टी ने दवाब में आकर टिकट दे दी। कमोवेश इसी दवाब का लाभ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को मिला। तिवारी ने अपनी जगह सिरमौर से नाती विवेक तिवारी को टिकट दिलवा दी,तो गुढ़ से उनके बेटे सुंदरलाल कांगे्रस महासचिव दिग्विजय सिंह के कारण टिकट लेने में सफल हुए। कुलमिलाकर यह सूची पूर्वानुमान के मुताबिक रही।
पहली बार लड़ेंगे विधानसभा
इस सूची में सबसे अधिक चौकानें वाली बात यदि कोई रही तो वह है पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का भोजपुर से चुनाव लड़ना। दरअसल, पचौरी इस सीट से अपने भतीजे गौरव को टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत थे, मगर पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने भतीजे की बजाय उन्हें ही उम्मीदवार घोषित कर दिया। पचौरी भोजपुर से भाजपा के विधायक सुरेंद्र पटवा के खिलाफ चुनाव मैंदान पर आ गए हैं। कदाचित उन्हें भी इस फैसले का अंदाजा नहीं रहा होगा। कांग्रेस की सूची में पचौरी के नाम ने उनके समर्थकों को ही नहीं बल्कि राजनीतिक हलके में हलचल मचा दी है। पचौरी अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। इससे पूर्व वे 1999 में भोपाल लोकसभा का चुनाव प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ लड़ा था, लेकिन विरोधियों के भितरघात के कारण हार गए थे। राजनीति में अपनी सूझबूझ से विरोधियों को चौंकाने वाले पचौरी की उम्मीदवारी उनकी मर्जी के बिना तो नहीं है, मगर इस निर्णय में कूटनीति झलक रही है। सवाल उठता है कि कहीं बड़े नेताओं के दांव में पचौरी उलझ तो नहीं गए? बताते हैं कि पचौरी भतीजे के लिए टिकट चाहते थे मगर उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने उन्हें इस सीट के लिए बेहतर उम्मीदवार बताकर दांव पलट दिया। हालांकि उनकी उम्मीदवारी से इस सीट का मुकाबला काफी रोचक होगा। पचौरी ने जिस निर्णय को स्वीकारा है वह उनके राजनीतिक जीवन में बड़ा टर्निंग पॉइंट भी साबित हो सकता है। इस सूची में शय-मात का खेल भी है। जैसे कि प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया चाहते थे कि थांदला से उनके बेटे चुनाव लड़ें,लेकिन मौजूदा विधायक वीरसिंह ने सीट छोड़ने से इंकार कर दिया। लिहाजा अब वीरसिंह की टिकट कट गई है। वहीं झाबुआ विधायक जेवियर मेड़ा भूरिया के दांव को पलटकर अपनी टिकट बचाने में सफल हो गए।
मलैया और बृजेंद्र प्रताप को मिलेगी चुनौती
दमोह से विधायक और मंत्री जयंत मलैया के खिलाफ पिछली बार महज 130 सीटों से चुनाव हारने वाले चंद्रभान सिंह को दोबारा टिकट मिल गई है। इस सीट पर मुकाबला कांटे का होगा तो वहीं पवई से उम्मीदवार बनाए गए पूर्वमंत्री मुकेश नायक के कारण मंत्री बृजेद्र प्रताप को कड़ी चुनौती मिलनी तय है।