भोपाल। मध्यप्रदेश में राजा और महाराज कांग्रेस में टकराव तेज हो गया है। सिंह एंड ब्रदर्स चाहते हैं कि चुनावी नेता भले ही सिंधिया रहें लेकिन विधायक हमारे आने चाहिए, वहीं सिंधिया का कहना है कि जब चुनाव हम जिताएंगे तो सीएम भी हम ही बनाएंगे।
कांग्रेस की ओर से सिंधिया से मुंहजोरी करने का जिम्मा कांतिलाल भूरिया ने संभाला हुआ है, जबकि अजय सिंह पीछे से गोटियां सेट कर रहे हैं। इधर कमलनाथ, सिंधिया के साथ हैं हाईकमान पर प्रेशर बना रहे हैं। मधुसूदन मिस्त्री बीच का रास्ता निकालने का उपक्रम कर रहे हैं परंतु दोनों को बेलेंस करना कांग्रेस हाईकमान के लिए ही सबसे मुश्किल काम है तो मिस्त्री कैसे कुछ कर पाएंगे।
सूत्र बता रहे हैं कि सिंधिया अब मधुसूदन मिस्त्री से भी नाराज हो गए हैं एवं उन्होंने साफ संकेत दे दिए हैं कि यदि भूरिया की मर्जी से टिकिट फाइनल करना है तो चुनाव प्रचार भी भूरिया से ही करवा लें।
सीईसी बैठक के बाद प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश ने प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया से भी बात की है। कई नामों का फैसला कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से ही हो पाएगा।
झगड़े की जड़
ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास समर्थक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा अब तक मालवा की जावरा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार सिंधिया चाहते हैं कि कालूखेड़ा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की सीट से चुनाव लड़ें।
साथ ही जावरा सीट पर भी अपने ही समर्थक को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। जो महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के करीबी रिश्तेदार बताए जाते हैं।
कांतिलाल भूरिया इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं और रतलाम जिले की सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। भूरिया आदिवासी नेता होने के नाते आदिवासी सीटों पर भी अपनी दावेदारी कर रहे हैं।
भूरिया का गणित
दिग्विजय खेमे के कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने टिकट वितरण की प्रक्रिया में अपने गुट को ज्यादा टिकट दिलाने के पूरे प्रयास किए हैं।
पहली सूची के 115 नामों में से 30 नाम आदिवासी सीटों के हैं। इस खेमे की रणनीति यह है कि प्रचार अभियान के बागडोर भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया संभाले रहें, लेकिन कांग्रेस बहुमत हासिल कर लेती है तो विधायकों की राय से मुख्यमंत्री बनाने की मांग की जाए। ऐसी स्थिति में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ नुकसान में रहेंगे।
सिंधिया का गणित
ज्योतिरादित्य सिंधिया का गणित यह है कि जब चुनाव प्रचार की बागडोर वह संभालेंगे तो स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के बहुमत की दशा में उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए।
तब वे ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की मुंगावली सीट से महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के स्थान पर चुनाव लड़ सकते हैं। सिंधिया अभी स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख मधुसूदन मिस्त्री और भूरिया के रवैये से इतने नाराज हैं कि मध्य प्रदेश के चुनावी मामलों से हाथ खींचने तक विचार करने लगे हैं।
भूरिया समूह इसे उनकी दबाव बनाने की रणनीति मान रहा है। सिंधिया यदि चुनाव अभियान से पीछे हट जाते हैं तो प्रदेश में कांग्रेस की संभावनाओं को भारी झटका लगेगा।