अरविंद रावल (झाबुआ)। आगामी विधानसभा के चुनावो में से जब से अध्यापक मोर्चे के प्रांतीय अध्यक्ष मुरलीधर पाटीदार को भाजपा ने सुसनेर विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया हे तभी से न केवल अध्यापक वर्ग में बल्कि कर्मचारी एवं राजनितिक क्षेत्र में भी कुछ लोग ऐसे बबाल मचा रहे हे कि जेसे कोई बहुत ही बड़ा तूफान आ गया हो और अब कोई भी अध्यापको का नेत्तृत्व करने वाला बचा ही नहीं है।
हम अपनी बात आगे रखने से पहले अपने सभी मित्रो और साथियो से यह स्पस्ट कर देना चाहते हे कि हमारे कहने का आशय न तो भाजपा और न ही पाटीदारजी कि तरफदारी करना हे ! हमारा तो सिर्फ और सिर्फ एक मात्र उद्देश शुरू से ही यही रहा हे कि - हम सभी अध्यापक साथियो में एकजुटता हर हाल में बनी रहे ! यकीन रखो जिसने भी अध्यापको के सुनहरे भविष्य कि आस पर और पेट पर लात मारने का काम किया हे ईस्वर उसे सबक जरुर सिखायेगा।
सोचे जरा अध्यापकों का नेतृत्व करने वाले करीब आधा दर्जन प्रांतीय नेता विभिन्न सगठनो के माध्यम से हैं। और यह भी सच है कि पाटीदारजी के नेतृत्व वाले संगठन ने ही सबसे ज्यादा अध्यापक हित में प्रदेश कि भाजपा सरकार से लड़ाई भी लड़ी थी। याद करो जब जब भी सरकार और अध्यापक नेताओ के बीच वार्ताएं हुई, समझोते हुए तब तब न केवल अकेले पाटीदार थे बल्कि अध्यापको के अन्य संगठनो के प्रांतीय नेतागण भी वहा मोजूद रहते थे ! और सभी के सभी ने अध्यापको के हर फेसले पर सहमति भी जताई है।
यदि मेरी बात गलत हे तो अभी तक अध्यापक हित कि बात करने वाले एक भी संगठन ने या उसके मुखिया ने सरेआम सरकार के खिलाफ जाने का ऐलान क्यों नहीं किया ? क्यों सभी हमारे नेतागण सरकार के हर फैसले को शिरोधार्य करके आपस में ही एक दूसरे पर कीचड़ उछाला करे ! और अभी भी अध्यापको के हितेषी बनने वाले नेता कुछ करने कि बजाय सिर्फ और सिर्फ आपस में ही कीचड़ ही उछाल रहे है।
कुछ साथी कहते हे कि पाटीदार ने सरकार से सौदा कर लिया है या अध्यापकों का आंदोलन एक टिकिट के बदले बेच दिया है और सरकार से किश्तो में वेतनमान देने का सौदा कर लिया है तो उस समय अध्यापकों के हित कि बात करने वाले और भी तो सगठनो के नेता मौजूद थे ! फिर सभी ने एकजुट होकर एक स्वर में किश्तो में दिए जाने वाले वेतनमान का जमीन पर उतर कर विरोध क्यों नहीं किया और क्यों अकेले अकेले अलग अलग लड़ने कि बात कही थी !
साथियो प्रदेश के तीन लाख अध्यापको को एक मुस्त वेतनमान नहीं दिला पाने के लिए हम मुरलीधर पाटीदार को दोषी मानते है! साथ ही हम अपने उन साथियो को भी बराबर का दोषी मानते हे जो बाते तो बड़ी अध्यापक हित कि करते हे किन्तु जब अध्यापक हित करने लिए जमीन पर उतर कर लड़ने कि बात आती हे तो सिवाय एक दूसरे पर मिथ्या दोषारोपण करने के कुछ करते भी नहीं हे ! सोचो जरा गम्भीर होकर भाजपा सरकार ने अध्यापको के आधा दर्जन प्रांतीय नेताओ में से सिर्फ उस मुरलीधर पाटीदार को ही क्यों अपना प्रत्याशी बनाया जिसने अध्यापक हित कि लड़ाई लड़ते हुए सरकार को और उसके नेताओ और मंत्रियो को कोसा हे, सरेआम विरोध किया हे !
बाकि उन अध्यापक नेताओ को नजर अंदाज़ क्यों किया जिन्होंने सरकार के हर फैसले का स्वागत किया था ! क्या पाटीदारजी को सिर्फ इसलिए टिकिट दिया हे कि प्रदेश के अध्यापक सरकार पर मेहरबान हो जायेगे या फिर इसलिए टिकिट दिया हे कि भविष्य में अध्यापक बिना पाटीदारजी के सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर पायेगे ! किसी के राजनीती में चले जाने से प्रदेश के अध्यापक अनाथ नहीं हो जाने वाला हे ! प्रदेश के प्रत्येक अध्यापक में इतना सामर्थ्य और साहस अब भी है की वह अपनी लड़ाई खुद लड़ सकता हे ! किसी भी व्यक्ति कि पहचान उसके सगठन से होती हे ! संगठन से बड़ा कभी कोई व्यक्ति होता भी नहीं हे !
यहाँ यह बात गोर करने लायक हे कि दुनिया में जब जब भी जिसने अपने संगठन से परे जाकर खुद कि पहचान स्थापित करने कि कोशिश कि हे तब तब उन लोगो को सदेव नाकामिया ही हाथ लगी हे ! राजनीती में जाना या नहीं जाना यह किसी भी व्यक्ति का निजी मामला होता हे ! मुरलीधर पाटीदार का राजनीती में जाना उनका अपना निजी फैसला हे ! पाटीदारजी के अचानक राजनीती में चले जाने से अध्यापक वर्ग में हर कोई स्तब्ध हे ! बेहतर तो यह होता कि पाटीदारजी यह ऐलान करके राजनीती में जाते -कि विधानसभा के अंदर जाये बिना अध्यापको का हित होने वाला नहीं हे तो और ज्यादा अच्छा होता ! मुरलीधर पाटीदार के राजनीती में चले जाने का विरोध सिर्फ फेसबुक पर वे ही साथी कर रहे हे जो सिर्फ शुरू से विरोध ही करते आये थे ! हम पाटीदारजी को उनके राजनीती में प्रवेश करने पर बधाई देते हे और उनसे यह अपेक्षा करते हे कि हे कि वि विधानसभा के अंदर भी अध्यापको के हक़ के लिए उसी आक्रोश से लड़े जिस आक्रोश से वे लड़ते आये हे !