एक टिकट नहीं मिला तो क्या हुआ ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। विधान सभा चुनाव में टिकट न मिलने के कारण धरना प्रदर्शन और इस्तीफे  आत्महत्या जैसे मामले मध्यप्रदेश में हुए हैं | इसका पहला चरण आयाराम-गयाराम तो पहले ही से चल रहा था | इसके आयाराम –गयाराम श्रंखला के तहत कुछ लोग पुरस्कृत भी हुए हैं |
कुछ कांग्रेस के बागी भाजपा से अपने भाई भतीजों को टिकट दिलवाने में सफल रहे हैं तो भाजपा का दमन छोड़ने वाले खुद टिकट पा गये हैं | सवाल यह है की टिकट की इतनी मारामारी क्यों ?

विधान सभा के आसन्न चुनाव के पहले तो जो सम्मानीय विधायक थे,उन्हें पुन: टिकट मिलते ही उनके पुतले जले | विरोध यहाँ तक पहुंचा कि दिल्ली भोपाल एक हो गया | सवाल  यह है की टिकट के लिए इतनी मारामारी क्यों? कितनी बार विधायक या संसद रहे? फिर खुद के बाद पत्नी,बेटे या किसी अन्य परिवारजन को ही टिकट क्यों ?

इनके उत्तर सबके पास हैं, परन्तु कोई देना नहीं चाहता है | सत्ता या प्रतिपक्ष में भागीदारी के अतिरिक्त लाभ उठाने की अदम्य लालसा, भ्रष्टाचार को पोषण और फिर परिवारवाद   की बात किसी से छिपी नहीं हैं | जनसेवा के  नाम पर जनता के सिर पर सवारी का भी तो मौका मुफ्त में मिलता है | अनेक बार चुन कर  किसी भी सदन की शीतल बयार का आनन्द उठाने वालों के पास इन सवालों का कोइ जवाब नहीं है | 

एक मतदाता के रूप में आप मतदान के पहले जरुर सोंचे कि एक से अधिक बार चुने जाने वाले विधायक या मंत्री ने क्या किया ? राज्य सभा या लोकसभा का सदस्य रह कर उसने क्या किया, जो अब विधायक बनना चाहता है | जिस परिवार का कोई सदस्य पहले जन प्रतिनिधित्व के नाम पर छलावा कर चुका हो उसे के परिजन को हम क्यों चुन रहे हैं ? आपकी विचारधारा की प्रिय पार्टी ने  कोई गलती की है , तो आप उसे सुधार दे यही देश हित होगा |

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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