भोपाल। मध्य प्रदेश में बीते 10 वर्षो में लापता (गुमशुदा) हुए लगभग 12 हजार बच्चों को अब तक नहीं खोजा जा सका है। इन बच्चों को खोजने में चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम (सीटीएस) मददगार साबित हो सकता है, इसीलिए सिस्टम से सरकारी महकमे को जोड़ने की कवायद चल रही है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में वर्ष 2004 से 2013 की अवधि में कुल 83 हजार 983 बच्चे लापता हुए हैं। इनमें से 71 हजार 932 बच्चे या तो अपने घर लौट आए हैं या उन्हें खोज लिया गया है। लगभग 12 हजार बच्चे अब भी लापता हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सूचना केंद्र ने ऑन लाइन पोर्टल बनाकर गुमशुदा बच्चों को खोजने के लिए चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम विकसित किया है।
इस सिस्टम से बच्चों के हित संरक्षण में लगे सरकारी अमले को परिचित कराने के साथ जोड़ने के मध्य प्रदेश में भी प्रयास शुरू हो गए हैं। इसी क्रम में रीवा जिले में 11 जिलों- अनूपपुर, सतना, रीवा, दमोह, छतरपुर, सीधी, शहडोल, टीकमगढ़, पन्ना, सिंगरौली और उमरिया की बाल संरक्षण इकाई, जिला अपराध अनुसंधान इकाई के निरीक्षक-निरीक्षक तथा विशेष बाल पुलिस (स्पेशल जुवेनाइल पुलिस) के लिए दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। प्रशिक्षण का आयोजन बच्चों की संस्था यूनिसेफ के साथ मिलकर पुलिस विभाग कर रहा है।
इस कार्यक्रम के पहले दिन अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के पुलिस महानिरीक्षक डी.सी. सागर ने कहा कि बचपन के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा, "हम न केवल गुमशुदा बच्चों का आंकड़ा ऑनलाइन तैयार नहीं करेंगे, बल्कि मिलने वाले बच्चों का ब्यौरा भी ऑनलाइन करेंगे। इससे महिला एवं बाल विकास विभाग को भी जोड़ा जाएगा।"
यूनिसेफ के बाल रोग विशेषज्ञ डा.पी.जे. लोहिचन का कहना है कि यूनिसेफ व पुलिस विभाग का यह प्रयास बाल संरक्षण को मजबूती प्रदान करने की दिशा में राज्य में चल रहे प्रयासों में मददगार साबित होगा। बच्चों को प्रशिक्षण देकर उनमें कौशल विकास किए जाने के भी प्रयास होंगे।
राज्य में वर्षो से लापता बच्चों को खोजने की दिशा में यह महत्वपूर्ण प्रयास माना जा सकता है, जो बिछड़ों को अपनों से मिलाने में मददगार बनेगा।