भोपाल: मध्यप्रदेश विधानसभा की बैठकें लगातार कम होती जा रही हैं और यदि कांग्रेस की दिग्विजय सरकार के दस साल और भाजपा की उमा भारती, बाबूलाल गौर एवं शिवराज सिंह चौहान के दस साल के कार्यकाल की तुलना की जाए, तो सदन की बैठकों की संख्या लगभग आधी रह गई है।
हालांकि वर्तमान चौदहवीं विधानसभा में अब यह देखना होगा कि शिवराज सरकार अपनी लगातार तीसरी पारी में विधानसभा की कितनी बैठकें कराती है।
विधानसभा सचिवालय से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस की दिग्विजय सरकार के वर्ष 1993 से 1998 के पहले कार्यकाल में विभिन्न सत्रों में सदन की बैठकों की संख्या 282 रही, जबकि वर्ष 1998 से 2003 के दूसरे कार्यकाल में यह संख्या 288 थी। वर्ष 2003 से 2008 में भाजपा सरकार में उमा भारती, बाबूलाल गौर एवं शिवराज सिंह चौहान के संयुक्त कार्यकाल के दौरान विभिन्न सत्रों में सदन की बैठकों की संख्या 158 और दूसरे कार्यकाल वर्ष 2008 से 2013 के बीच सदन की बैठकों की संख्या 167 रही हैं।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि कांग्रेस की दिग्विजय सरकार की तुलना में भाजपा की उमा, गौर एवं शिवराज सरकार के कार्यकाल में सदन की 245 बैठकें कम हुई हैं। संसदीय कामकाज के जानकार वीडी मेहता कहते हैं कि संविधान में विधायिका के सत्रों में बैठकों की संख्या की बाध्यता को लेकर कोई नियम नहीं है। लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सरकार के कामकाज पर बहस होना जरूरी है। संविधान में केवल छह माह के अंतराल में विधानसभा की कम से कम एक बैठक बुलाने का प्रावधान है।
भाजपा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा की बैठकों को लेकर कांगे्रस नेता यह आरोप लगाते आए हैं कि सत्तारूढ़ भाजपा सदन में जनहित एवं अन्य मामलों पर बहस से बचना चाहती है, ताकि शासन की कार्यप्रणाली सार्वजनिक नहीं हो सके। इस बारे में मध्यप्रदेश विधानसभा के नए अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा ने कहा है कि विपक्ष जनता की बात सही तरीके से रखे और व्यक्तिगत आरोप के बजाय सरकार की नीतियों एवं फैसलों पर अपनी राय दें। इससे सदन की गरिमा के साथ निश्चित तौर पर बैठकों की संख्या बढ़ जाएगी।
दूसरी ओर, कांग्रेस की दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में लगातार दस साल तक विधानसभा के अध्यक्ष रहे श्रीनिवास तिवारी ने कहा कि जो सरकार बहस को तैयार नहीं होती और कार्यप्रणाली को सार्वजनिक नहीं करना चाहती, वह सदन की बैठकों से बचती है। उन्होंने कहा कि सदन की बैठक बुलाना किसी भी सरकार की जिम्मेदारी है और इसे कांग्रेस की सरकारों ने निभाया है, लेकिन भाजपा सरकार नहीं चाहती कि बैठकें हों।