गुना। दाउदी बोहरा समाज के 52वें दाईयुल मुतलक और पूरी दुनिया को अमन का पाठ पढ़ाने वाले धर्मगुरु डॉ सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन नहीं रहे। मुंबई के मालाबार हिल्स स्थित सैफी महल में शुक्रवार सुबह ह्दयाघात के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली।
102 वर्षीय सैयदना का जन्मदिन तीन सप्ताह बाद बहुत धूमधाम से मनाये जाने की तैयारिया चल रही थीं। उनके निधन से पूरे समाज में शोक की लहर दौड़ गई और सभी संस्थान बंद हो गए। समाज के सभी सदस्य लगभग साढेÞ बारह बजे मस्जिद में एकत्रित हुए। नमाज के बाद स्थानीय आमिल शेख शब्बीर गोधरावाला ने जैसे ही भरे गले से निधन की अधिकारिक घोषणा की, मस्जिद में एक कोहराम सा मच गया और रूदन के स्वर तेज होते चले गए, हर सदस्य मातमे हुसैन में डूब गया, खत्मुल कुरआन किया गया। तीन दिवस तक शोक स्वरूप समुदाय के सभी संस्थान बंद रहेंगे। गुना स्थित मस्जिद एवं बोहरा कॉम्पलेक्स उन्हीं की बेशुमार यादगारों में से एक है।
सैयदना का जन्म गुजरात के सूरत शहर में हुआ था। उनके पिता 51वें दाई सैयदना ताहिर सैफुद्दीन के निधन के बाद 1965 में वे 52वें दाई हुए। 48 वर्ष तक उन्होंने दाई के रूप में इस दुनिया को धर्म, कर्म और शांति की दावत दी। संभवत: पूरी दुनिया में वे एकमात्र शख्सियत थे, जिन्हें दुनिया के कई देशों की नागरिकता प्राप्त थी और वहां जाने पर वे राजकीय मेहमान रहते थे।
उनके 100वें जन्मदिवस के अवसर पर 52000 स्पैरो फीडर(पक्षी दाना पात्र) पूरे विश्व में वितरित किये गए थे जिसे गिनीज बुक में दर्ज किया गया है। भारत के अलावा ईजराईल, जॉर्डन, इजिप्ट, ईराक, सऊदी अरब, यमन, बांग्लादेश, श्रीलंका, ईरान, संयुक्त राष्टÑ अमेरिका, इंग्लैण्ड, हांगकांग, पाकिस्तान और यूरोप तथा एशिया के कई देशों में उन्होंने आधुनिक फातेमी वास्तुकला आधारित मस्जिद, स्कूल, दरगाह, धर्मशाला आदि का निर्माण कराया है जो हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा। आधुनिक तकनीक से निर्मित एशिया का पहला सैफी हॉस्पिटल मुंबई में उन्हीं की एक अनुपम सौगात है।
करबला, नजफ, मिस्त्र, सीरिया स्थित विभिन्न दरगाहों में स्वर्ण जड़ित ज़रीह उन्होंने ही बनवार्इं। अमेरिकी राष्टÑपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कैलिफोनिर्या में उन्हें सम्मानित किया। जॉर्डन ने आॅर्डर आॅफ जॉर्डन, इजिप्ट ने निशानुल नील, टेक्सास ने स्टार आॅफ टेक्सास और मैडागास्कर ने ग्रांड क्रॉस से विभूषित किया था। भारत, कैरो, पाकिस्तान, ईराक, सेनजोस, डलास, इरविंग, रिचमंड हिल और ह्यूस्टन ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की थीं। वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रहे हैं। उनके निधन के पश्चात द्वितीय पुत्र सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन को 53वां दाई घोषित कर दिया गया है, जिन्होंने अपना कार्यभार संभाल लिया है।
नूरुल हसन नूर गुना
डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन एक श्रेष्ठतम शिक्षाविद, उदार मन, मानवतावादी और भलाई के अग्रदूत हैं। वे दुनियाभर में फैले दाऊदी बोहरा समाज के प्रमुख हैं।
तेरह वर्ष की अल्प आयु में अपने वालिद की देखरेख में ली गई तालीम के परिणामस्वरूप सैयदना ने पूरी की पूरी कुरान-ए-मजीद को याद कर लिया था।
उन्नीस बरस की आयु में 51वें दई-अल-मुतलक सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने सैयदना को अल-दई-अल-मुतलक का वारिस मुकर्रर कर दिया था। 1941 में सैयदना को अल-अलीम-उर-रासिक का खिताब अता किया गया। साथ ही एक बरस बाद सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने उन्हें उमादातुल उलमा एल मुवाहेदीन का खिताब अता किया। यह दुर्लभ सम्मान है, जो समुदाय के सबसे ज्यादा विद्वान इंसान को ही दिया जाता है।
सैयदना ने हजारों बोहराओं की नगरी तथा चार सदियों से दावत की गद्दी यमन की यात्रा की, जिसके परिणामस्वरूप यमन सरकार और वहां के लोगों ने बोहराओं को मान्यता प्रदान कर दी। इस महान उपलब्धि पर सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने अपने बेटे को 'मंसूर-उल-यमन' नामक ऐतिहासिक खिताब से नवाजा। यह खिताब इससे पहले एक मर्तबा बारह सदी पहले दिया गया था।
सैयदना ताहेर सैफुद्दीन के इंतकाल होने पर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन अल-दाइल-अल मुतलक की गद्दी पर 52वें गद्दीनशीन जलवा अफरोज हुए। अपने पूर्वजों और वालिद की परंपरा को अपनाते हुए सैयदना ने पहला रिसाला रमदानिया इस्तिफताहो जोबादिल मारिफ, जो कि अरब साहित्य की रचना है, लिखा।
दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी और सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षण केन्द्र अल-अजहर यूनिवर्सिटी ऑफ कैरो, इजिप्ट ने सैयदना को डॉक्टर ऑफ इस्लामिक स्टडीज (सम्मानजनक कार्य के लिए) की उपाधि प्रदान की।
डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब मानवता की मिसाल हैं। उन्होंने बोहरा समाज को एक नई दिशा दी है। सैयदना साहब ने सिखाया है कि न कोई बड़ा है और न कोई छोटा बल्कि सब एक समान हैं। वे कहते हैं कि सबका भला करो, गुस्सा मत करो, मीठा बोलो। उनका बताया रास्ता मानवता का रास्ता है। सैयदना साहब के व्यापक तथा उदारवादी मानवीय कार्यों के प्रति समस्त बोहरा समुदाय नतमस्तक हैं।
डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन का जीवन परिचय
बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन का जन्म सूरत में सन् 1915 में हुआ। उनके वालिद साहब हिज होलीनेस डॉ. सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने यह फरमाया था कि उनका बेटा फातेमी दावत (इमाम का वह मिशन जो अल-दई-अल मुतलक द्वारा चलाया जाता है) के सम्मान तथा प्रतिष्ठा का अग्रदूत होगा।डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन एक श्रेष्ठतम शिक्षाविद, उदार मन, मानवतावादी और भलाई के अग्रदूत हैं। वे दुनियाभर में फैले दाऊदी बोहरा समाज के प्रमुख हैं।
तेरह वर्ष की अल्प आयु में अपने वालिद की देखरेख में ली गई तालीम के परिणामस्वरूप सैयदना ने पूरी की पूरी कुरान-ए-मजीद को याद कर लिया था।
उन्नीस बरस की आयु में 51वें दई-अल-मुतलक सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने सैयदना को अल-दई-अल-मुतलक का वारिस मुकर्रर कर दिया था। 1941 में सैयदना को अल-अलीम-उर-रासिक का खिताब अता किया गया। साथ ही एक बरस बाद सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने उन्हें उमादातुल उलमा एल मुवाहेदीन का खिताब अता किया। यह दुर्लभ सम्मान है, जो समुदाय के सबसे ज्यादा विद्वान इंसान को ही दिया जाता है।
सैयदना ने हजारों बोहराओं की नगरी तथा चार सदियों से दावत की गद्दी यमन की यात्रा की, जिसके परिणामस्वरूप यमन सरकार और वहां के लोगों ने बोहराओं को मान्यता प्रदान कर दी। इस महान उपलब्धि पर सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने अपने बेटे को 'मंसूर-उल-यमन' नामक ऐतिहासिक खिताब से नवाजा। यह खिताब इससे पहले एक मर्तबा बारह सदी पहले दिया गया था।
सैयदना ताहेर सैफुद्दीन के इंतकाल होने पर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन अल-दाइल-अल मुतलक की गद्दी पर 52वें गद्दीनशीन जलवा अफरोज हुए। अपने पूर्वजों और वालिद की परंपरा को अपनाते हुए सैयदना ने पहला रिसाला रमदानिया इस्तिफताहो जोबादिल मारिफ, जो कि अरब साहित्य की रचना है, लिखा।
दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी और सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षण केन्द्र अल-अजहर यूनिवर्सिटी ऑफ कैरो, इजिप्ट ने सैयदना को डॉक्टर ऑफ इस्लामिक स्टडीज (सम्मानजनक कार्य के लिए) की उपाधि प्रदान की।
डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब मानवता की मिसाल हैं। उन्होंने बोहरा समाज को एक नई दिशा दी है। सैयदना साहब ने सिखाया है कि न कोई बड़ा है और न कोई छोटा बल्कि सब एक समान हैं। वे कहते हैं कि सबका भला करो, गुस्सा मत करो, मीठा बोलो। उनका बताया रास्ता मानवता का रास्ता है। सैयदना साहब के व्यापक तथा उदारवादी मानवीय कार्यों के प्रति समस्त बोहरा समुदाय नतमस्तक हैं।