राकेश दुबे@प्रतिदिन। व्यवसायिक परीक्षा मंडल घोटाले में नित नई उजागर होती बातों से दो बातें साबित होती है कि मध्यप्रदेश सरकार [जिसके मुखिया शिवराज सिंह थे और अभी भी हैं] अपनी पर्यवेक्षक की भूमिका में खरी नहीं उतरी और मुख्यमंत्री सहित सब सबकुछ जानते हुए भी चुप थे |
अपने को देश के लिए बने होने और ईमानदारी के तमगे बटोरने वाले उन स्वनामधन्य आला अफसरों से कम से कम यह तो पूछा ही जा सकता है की जब व्यापम में घोटाले हो रहे थे और वे वहां से लाखों रूपये भत्ते के रूप में रोज बटोर रहे थे तब यह सब कैसे हुआ और इसके पीछे वह बड़ी ताकत कौनसी थी, जिसके इशारे पर मंडल के कमंडल नाच रहे थे |
नोटों के बंडल किसने कितने बटोरे अब सब साफ हो रहा है | पंकज त्रिवेदी बोल रहा है, उसके सच पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों की यह हिम्मत नहीं है कि वे शीर्ष पर बैठे लोगों से पूछे की वे क्या कर रहे थे? प्रवेश परीक्षा से डिग्री तक का सौदा हुआ है | मंडल से लेकर विश्वविद्यालय तक भाई- भतीजों का जाल बिछा था अभी भी यहाँ-वहां बैठे छोटे-बड़े भाई सबूत के साथ कुछ तो कर ही रहे होंगे | सरकार तो विधान सभा में मासूमियत से जवाब देकर निकल गई और प्रतिपक्ष को भी कोई विशेष रूचि नहीं है , क्योंकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एक उम्मीदवार के कुरते पर इसकी कालिख लगी हुई है |
मुख्यमंत्री और विशेष कर शिवराज सिंह जैसे मुख्यमंत्री को इस मामले में एक तथ्यपूर्ण श्वेतपत्र जारी करना चाहिए | मुख्यमंत्री विधानसभा से पहले मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है और इस मामले को अपनी परीक्षा मानकर आत्मपरीक्षण करना चाहिए | जनता द्वारा आपको दिए गये पुन: अवसर का यह तकाजा भी है|