भोपाल। निजी विश्वविद्यालयों ने अपने अंतर्गत शामिल कोर्सेस की पहले से तय फीस बढ़ा दी है। इससे प्रभावित हो रहे छात्र अपनी शिकायत लेकर मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग और प्रवेश एवं शुल्क निर्धारण विनियामक समिति (फीस कमेटी) के बीच चक्कर काट रहे हैं, लेकिन एक्ट के प्रावधानों के कारण दोनों ही संस्थाएं छात्रों की समस्या दूर कर पाने में फिलहाल असमर्थ साबित हो रही है।
निजी विश्वविद्यालयों के कोर्सेस की फीस को लेकर आयोग और फीस कमेटी आमने सामने हो गए हैं। जहां इन विश्वविद्यालयों के कोर्सेस की फीस तय करने को आयोग अपना कार्यक्षेत्र बता रहा है, वहीं फीस कमेटी एक्ट का हवाला देकर कमेटी द्वारा तय की गई फीस लागू होने की बात कह रही है।
हाल ही में यह मामला तब सामने आया जब राजधानी के ही पीपुल्स यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र फीस संबंधी समस्या को लेकर फीस कमेटी पहुंचे। ये सभी छात्र पीपुल्स डेंटल एकेडमी के हैं। छात्रों ने कमेटी को सौंपी लिखित शिकायत में बताया है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा सत्र 2012-13 में एडमिशन लेने वाले छात्रों से बीडीएस कोर्स की फीस 1 लाख 98 हजार रुपए सालाना वसूली जा रही है जबकि फीस कमेटी ने विवि का दर्जा मिलने से पहले संबंधित निजी कॉलेज के लिए बीडीएस की फीस 1 लाख 57 हजार रुपए सालाना तय की गई थी।
बताया जाता है कि कॉलेज ने विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद छात्रों की फीस में वृद्धि कर दी है। जबकि छात्र एडमिशन के दौरान उन्हें बताए गए फीस स्ट्रक्चर के ही अनुसार फीस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। फिलहाल फीस कमेटी ने मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है।
अब आयोग का अधिकार क्षेत्र
वहीं मध्यप्रदेश निजी विवि विनियामक आयोग के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश पांडे का कहना है कि कॉलेज को विवि का दर्जा मिलने के बाद यह मामला आयोग के क्षेत्राधिकार में आ गया है। आयोग द्वारा निजी विश्वविद्यालयों के लिए जो भी फीस तय की जाएगी, वही राशि छात्रों को अदा करनी होगी।
फीस कमेटी के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी सुनील कुमार ने बताया कि निजी कॉलेजों में संचालित बीडीएस कोर्स की फीस तीन-तीन सालों के लिए तय की गई है। सत्र 2012-13 के लिए भी कमेटी ने ही कोर्स की फीस तय की थी। एक्ट के नियमानुसार प्रवेश लेते समय जो फीस लागू की जाती है, वही फीस पूरे कोर्स के दौरान ली जाती है। लिहाजा इस वर्ष भी कमेटी द्वारा तय फीस ही ली जा सकती है। लेकिन इस बीच कॉलेज को विवि का दर्जा मिलने के कारण संस्था प्रबंधन ने अधिक फीस लागू करके वसूलना शुरू कर दिया है।