भोपाल। प्रदेश अध्यक्ष पद पर अरुण यादव की नियुक्ति के बाद मध्यप्रदेश कांग्रेस में दो चीजें एक साथ हो गईं। पहली तो यह कि मध्यप्रदेश की राजनीति में अब दिग्विजय सिंह का सफाया तय हो गया है और दूसरी कांग्रेस पर से क्षत्रियों का पेटेंट समाप्त हो गया है।
सनद रहे कि लम्बे समय तक मध्यप्रदेश के ब्लॉक लेवल तक कांग्रेस पर क्षत्रियों का आधिपत्य रहा है। यदि कहीं कोई गैर क्षत्रिय पदाधिकारी हुआ भी तो वह भी क्षत्रिय का कृपापात्र ही रहा है। कुल मिलाकर सिंधिया और कमलनाथ को छोड़कर पूरी की पूरी राजनीति ही क्षत्रियों के इर्दगिर्द घूमा करती थी। अर्जुन सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह तक यह परंपरा लगातार जारी रही परंतु पिछले 10 सालों से मध्यप्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह के साथ साथ क्षत्रियों का महत्व भी घटना चला जा रहा है।
विधानसभा चुनाव में दिग्गी की चतुर चालों के बाद तो जैसे कांग्रेस के तमाम दिग्गज दिग्विजय सिंह के खिलाफ एकजुट हो गए थे। ठीक वैसे ही जैसे केन्द्र में साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए कई विरोधी मानसिकता वाले भी एकजुट दिखाई देते हैं।
पहले नेता प्रतिपक्ष पद पर सत्यदेव कटारे और अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर अरुण यादव की ताजपोशी के बाद यह तय हो गया कि अब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह का कोई भविष्य नहीं रहा। या तो उन्हें वीआरएस ले लेना चाहिए या फिर उन्हें फोर्सलीव पर भेज दिया जाएगा।
वैसे दिग्विजय सिंह ने भी बातों बातों में वीआरएस अप्लाई कर दिया है। अब वो मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय नहीं रहेंगे और केन्द्र की राजनीति में भागीदारी करेंगे। उन प्रदेशों में वो ज्यादा एक्टिव होंगे जहां के कांग्रेस और जनता कम से कम मध्यप्रदेश की जनता और कांग्रेसियों के संपर्क में ना हो।