भोपाल। लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने एक बार फिर सरकार से लोकपाल जैसे अधिकार लोकायुक्त संगठन को देने की मांग की है। मध्यप्रदेश में लोकायुक्त को बिना नाखून वाला शेर कहा जाता है जो केवल कमजोर कर्मचारियों, अधिकारियों पर ही कार्रवाई कर पाता है। ताकतवर करोड़पतियों और मंत्रियों तक पहुंचने के लिए उसके हाथ अभी छोटे हैं।
उन्होंने कहा कि अधिनियम में संशोधन के लिए करीब सालभर पहले भेजे गए मसौदे पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है। जब तक विधायक जांच के दायरे में और सर्च के साथ सीजर के पॉवर नहीं मिलेंगे, प्रभावी कार्रवाई में दिक्कत आती रहेगी। जीरो टॉलरेंस की नीति भी तभी सफल हो सकती है जब जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्थाओं को पॉवरफुल बनाया जाए।
जस्टिस नावलेकर ने कहा कि सरकार से लोकायुक्त संस्था को सशक्त करने की बात हो रही है। लोकपाल बिल पास होने से हमारी बातों को और बल मिला है। हम पहले से ही कह रहे हैं कि विधायक, विश्वविद्यालय और वे लोकधन प्राप्त करने वाले पदाधिकारियों की संस्थाओं को भी हमारी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए। इसके लिए अधिनियम में संशोधन के लिए भेजे मसौदे पर एक साल बाद भी निर्णय नहीं हुआ है।
शॉकिंग है व्यापमं मामला
उन्होंने कहा कि व्यापमं मामला शॉकिंग हैं। मेरिट को समाप्त करके मेडिकल साइंस में एडमिशन देना गंभीर मामला है। हमें तथ्यपरक शिकायत मिलती है तो इसमें कार्रवाई कर सकते हैं। हमारे साथ समस्या यह है कि हमें कोर्ट जाना होता है जहां हमें अपनी बात साबित करने के लिए लीगल एवीडेंस चाहिए होते हैं।
सरकार कागज तो दे
मंत्रियों और अफसरों से जु़डी जांच में लेटलतीफी पर नावलेकर ने बताया कि हर प्रकरण के लिए दस्तावेजों की दरकार होती है। मंत्रियों और अफसरों की शिकायतों के संबंध में सरकार से ही दस्तावेज मांगे जाते हैं। इसमें देर होने पर जांच भी प्रभावित होगी। दस्तावेज के लिए संगठन की ओर से मांग ही की जा सकती है जो हम लगातार करते रहते हैं।