रतनगढ़ हादसा: मानवाधिकार आयोग का सामना नहीं कर पाए कलेक्टर/एसपी

भोपाल। रतनगढ़ हादसे के संबंध में मानव अधिकार आयोग ने शुक्रवार को एक स्पेशल बैंच बुलाई। बैंच में सुनवाई के दौरान तत्कालीन कलेक्टर संकेत भोंडवे और एसपी उपस्थित हुए, जिनसे आयोग ने हादसे के संबंध में कई सवाल किए।

आयोग द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब न दे पाने की सूरत में आयोग गहरी आपत्ति जताई। इस पर कलेक्टर और एसपी ने कुछ दिनों वक्त मांगा, आयोग ने नाराजगी जताते हुए जांच रिपोर्ट पेश करने के लिए 28 मार्च तक का समय दिया है। आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष एके सक्सेना ने बताया कि इस सुनवाई में कलेक्टर पहली बार उपस्थित हुए थे, जबकि एसपी पहले भी आ चुके हैं।

ऐसा था वह भयानक हादसा


दुर्गा नवमी होने के कारण यहां सुबह से ही भक्तों की खासी भीड़ जमा हो गई थी।  सुबह 8 बजे से देवी मां के मंदिर के बाहर लगभग 5 किमी लंबा जाम लग गया था। पुल पर आवाजाही पूरी तरह से बंद हो चुकी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने पुल पर वाहन आड़ा लगाकर खुद ही आवाज दे दी थी, कि पुल टूट गया है।यह सुनकर लोगों ने भागना शुरू कर दिया और लोगों को कंट्रोल में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इसके बाद ऐसी भगदड़ मची कि पुल पर लाशें बिछ गईं। हादसे से बचने के लिए लोग कुछ लोग नदी में भी कूदें, लेकिन अपनी जान बचा न सके।

दो सौ रुपए के लालच में हुआ था हादसा

श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए हर साल बसई पुल पर वाहनों को रोका जाता था। लेकिन प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक पुलिसकर्मी इस बार दो सौ से तीन सौ रुपए लेकर वाहनों को पुल तक जाने दे रहे थे। इस कारण मंदिर से लेकर पांच किलोमीटर तक लंबा जाम लग गया। पैदल जाने के लिए भी रास्ता नहीं बचा था। इससे निपटने के लिए लाठीचार्ज और पुल टूटने की अफवाह फैलाई गई थी, जो कि जानलेवा साबित हुई।

पुलिसकर्मियों की बेरहमी

हादसे में घायल तड़पते श्रद्धालुओं को बचाने के बजाय पुलिस वाले मौके से भाग निकले। तड़पते लोगों को परिजन गोद में उठाकर भागे, लेकिन पैदल भागने में बहुत देर हो चुकी थी। अपनों ने गोद में ही दम तोड़ दिया था। पुलिस व प्रशासन ने भी घायलों के इलाज के कोई इंतजाम नहीं किए थे। इतना ही नहीं चार घंटे बाद मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों ने बिना पंचनामा के लाशों को उठवाने का काम शुरू कर दिया था।

यह थे हाल

भगदड़ के बाद सिंध पुल पर बिछी लाशों में से बदहवास परिजन अपनों को खोज रहे थे। कोई अपना बेटा ढूंढ़ रहा था तो कोई पत्नी। हादसे में घायल कुछ लोगों ने जान बचाने के लिए लाश से साडिय़ां खींची और पुल से साड़ी के सहारे नदी में उतर गए। लेकिन, तेज बहाव के आगे वे हिम्मत हार गए और अपनों की आंखों के सामने बह गए।

बड़ी लापरवाही हुई उजागर

पुलिस व प्रशासन को पता था कि हर साल नवमी पर इस मंदिर में एक लाख से अधिक श्रद्धालु जुटते हैं। इसके बावजूद पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए थे। घटना के समय मौके पर महज छह पुलिसकर्मी ही मौजूद थे। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए हर साल बसई पुल पर वाहनों को रोका जाता था। लेकिन पुलिस ने पैसे लेकर वाहनों को पुल तक आने दिया।


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