मध्यप्रदेश के जवाहर चौधरी को 'व्यंग्यश्री सम्मान'

मधुकांत वत्स/नर्इ दिल्ली। व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार, वाचिक परंपरा के उन्नायक, अपने समय के प्रतिष्ठित पत्रकार, ब्रज साहित्य के मर्मज्ञ, हिन्दी भवन के संस्थापक एवं हिन्दीसेवी   पं. गोपालप्रसाद व्यास की जन्मशती के उपलक्ष्य में आयोजित ‘व्यंग्यश्री सम्मान राजधानी के लेखकों, पत्रकारों और राज-समाज सेवियों के बीच वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री जवाहर चौधरी को हिन्दी भवन सभागार में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

इस अठारहवें व्यंग्यश्री सम्मान से श्री चौधरी को वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक प्रो0 नामवर सिंह, विख्यात व्यंग्यकार डा0 ज्ञान चतुर्वेदी, सुपरिचित व्यंग्यकार श्री यज्ञ शर्मा, डा0 शेरजंग गर्ग, हिन्दी भवन की न्यासी गीता चन्द्रन एवं श्री सुनील चोपड़ा ने क्रमश: रजत श्रीफल, प्रशसित पत्र, शाल, पुष्पहार, वाग्देवी की प्रतिमा और एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपये की राशि देकर विभूषित किया।

हिन्दी साहित्यकार डा0 शेरजंग गर्ग ने जवाहर चौधरी को बधार्इ देते हुए कहा कि व्यासजी की जीवंतता अदभुत थी। उनकी रचनाएं, उनकी बातें, उनकी यादें बहुत आती हैं। वह व्यंग्य के शीर्षस्थ हस्ताक्षर होने के साथ-साथ, गध के शिल्पी थे।

व्यंग्यश्री सम्मान प्रदान करने के लिए हिन्दी भवन का आभार व्यक्त करते हुए जवाहर चौधरी ने हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद व्यास को याद करते हुए कहा कि मुझे उनके दर्शन करने का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन उनके द्वारा रचित रचनाओं को मैंने पढ़ा है। इस अवसर पर श्री चौधरी ने अपनी कुछ व्यंग्य रचनाओं का पाठ भी किया।

समारोह के विशिष्ठ अतिथि श्री यज्ञ शर्मा ने व्यासजी को याद करते हुए कहा जवाहर भार्इ इन्दौर यानी मध्यप्रदेश के निवासी हैं। वही मध्य प्रदेश, जिसे वहां की सरकार हिन्दुस्तान का दिल कहती है। वास्तव में तो मध्यप्रदेश हिन्दुस्तान का व्यंग्य प्रदेश है। मध्यप्रदेश न उत्तर में है, न दक्षिण में। न पूर्व में न पशिचम में। नहीं-नहीं, इसका यह मतलब नहीं कि मध्यप्रदेश के पास अपनी कोर्इ दिशा नहीं है। असली बात यह है कि मध्यप्रदेश मध्य में है, यानी चारों तरफ से घिरा हुआ है। जो चारों तरफ से घिरा हुआ होगा, वह व्यंग्य नहीं तो और क्या लिखेगा ?

मुख्य अतिथि डा0 ज्ञान चतुर्वेदी ने हास्य-विनोद में मुख्य अतिथि पद की गरिमा और अगरिमा को रेखांकित करते हुए विनोद की संस्तुति की। उन्होंने व्यंग्य को थोक के भाव लिखने वालों को भी आडे हाथों लिया।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक प्रो0 नामवर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में व्यंग्य को व्याख्यायित करते हुए कहा कि व्यंग्य में व्यंजना का होना अनिवार्य है। व्यंग्य में जिस पर व्यंग्य किया जाए वह भी उससे आनंदित और प्रसन्न हो तो व्यंग्य सफल हो जाता है।

श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सानिनध्य में आयोजित इस समारोह का कुशल संचालन हिन्दी भवन की न्यासी डा0 रत्ना कौशिक ने किया। उन्होंने व्यासजी को याद करते हुए कहा कि उनका सपना था कि देश की राजधानी में हिन्दी का अपना एक घर हो, उनका सपना ‘हिन्दी भवन के रूप में आपके सामने साकार खड़ा है। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ व्यंग्य कवि एवं हिन्दी भवन के मंत्री डा0 गोविन्द व्यास ने किया। इस अवसर पर राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दीसेवी एवं राज-समाजसेवी काफी संख्या में उपसिथत थे।

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