100 करोड़ का जमीन घोटाला, संदेह की सुई 3 IAS अफसरों पर

shailendra gupta
रीवा। रीवा संभाग में पदस्थ रहे एक पूर्व कमिश्नर और दो पूर्व कलेक्टरों की सांठगाठ से हनुमना की एक अरब कीमती जमीन बिक गई. अभिलेखों हेराफेरी कर किये गए भूमि घोटाले का भंडाफोड़ किसी और ने नहीं बल्कि तहसील कार्यालय हनुमना में पदस्थ रहे लिपिक काशीप्रसाद दुबे द्वारा किया गया था। बावजूद सरकार की बेशकीमती संपत्ति को नहीं बचाया जा सका।

हनुमना तहसील और पहाड़ी सर्किल के 25 फर्जी प्रकरण तैयार कर वहाँ के तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक, पटवारी, तहसील के बाबुओं ने कुछ रसूखदार भू-माफियों से सांठगांठ कर तकरीबन 50 एकड़ सरकारी जमीन का व्यवस्थापन और नामांतरण कर दिया था, जिसकी जानकारी होने पर लिपिक काशीप्रसाद ने शासन हित में तत्कालीन कलेक्टर एस.के.मिश्र के समक्ष शिकायत की थी.

कलेक्टर श्री मिश्र ने एसडीएम-मऊगंज को मामले की जांच सौपी. एसडीएम ने जांच में शिकायत प्रमाणित पाई और सभी 25 फर्जी प्रकरणों को निरस्त करते हुए शासकीय अभिलेखों में पुनः भूमि को मध्यप्रदेश शासन के नामे दर्ज करने के निर्देश दिए थे, परन्तु इस भूमि घोटाले के सूत्रधार हनुमना सर्किल के पूर्व तहसीलदार रमेश रावत द्वारा शासन के नाम पर जमीन दर्ज नहीं की गई बल्कि सभी फर्जी प्रकरणों को गायब कर दिया गया.

तत्पश्चात रमेश रावत के बाद जितने भी तहसीलदार पदस्थ हुए और समय-समय पर पदस्थ प्रवाचको मिथिला प्रसाद मिश्र, नागेश्वर प्रसाद मिश्र, प्रेमशंकर मिश्र आदि ने प्रकरणों को दबाये रखा और कथित मूल प्रकरणों का क्रमांक बदलकर पूरा मामला ही उलट-पलट कर दिया

बलवीर रमण ने दिया अंजाम

सूत्रों के अनुसार हनुमना भूमि घोटाले में शासकीय भूमि विक्री को वर्ष 2009-10 में पदस्थ रहे तहसीलदार बलवीर रमण ने अंजाम दिया, जिन्होंने जांच के दायरे में लाए गए प्रकरण क्रमांक-06,07,08,09 एवं 10 अ6अ/2002-03 में हेराफेरी करते हुए उनका प्रकरण क्रमांक-27,28,29,30 एवं 31 अ6अ/96-97 किया और प्रकरण क्रमांक 29 अ6अ/96-97 में अभिलेखीय गोलमाल कर करीब साढ़े 15 एकड़ शासकीय भूमि स्थानीय रसूकदार कमला मिश्र, वंशमणि शुक्ल, संगमलाल तिवारी निवासी-टूडीयार, त्योंथर सहित अन्य कई नाम पर दर्ज करते हुए उन्हें भूमिस्वामी बना दिया. सूत्र बताते है की इन सभी रसूकदारो ने करीबन एक अरब कीमत की जमीन अपने नाम करा ली और अब मुफ्त में हडपी गई जमीन को भूखण्ड बनाकर विक्री किये जा रहे है. इन भूखंडों की रजिस्ट्री भी हो चुकी है, जबकि नामांतरण नहीं हो पाया है.

चार साल बाद मिली नक़ल

शिकायतकर्ता लिपिक काशीप्रसाद दुबे को उक्त भूमियों की विक्री की भनक लग गई थी लिहाजा उन्होंने नक़ल के पुरजोर प्रयास किये परन्तु घोटाले में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों ने नक़ल नहीं दी. बहरहाल उक्त प्रकरणों की नक़ल 2013-14 में चार साल बाद मिली तब पता चला की वादग्रस्त भूमियों की विक्री की जा चुकी है.
जबकि यह भूमि घोटाला ई.ओ.डब्लू की विवेचना उपरान्त जिला न्यायालय की सुनवाई में चल रहा है. वहीँ आरोपित कलेक्टर एस के मिश्र, तहसीलदार रमेश रावत, बलवीर रमण सहित 19 लोगों के विरुद्ध अपर न्यायालय मऊगंज में प्रतिवाद भी दाखिल है.

तीन आईएएस लपेट में

बहुचर्चित हनुमना भूमि घोटाले की पृष्ठभूमि तब तैयार की गई थी, जब एस.के.मिश्र रीवा कलेक्टर के पद पर पदस्थ थे, उन्होंने प्रारंभ में जांच तो कराई परन्तु जब एस.डी.एम. की जांच रिपोर्ट शासन के पक्ष में आ गई तो वे मामले में पर्दा डालने लगे. एस.के.मिश्र के बाद डी.पी.आहूजा कलेक्टर हुए, उन्होंने भी घोटाले में लिप्त नौकरशाही का बचाव किया, जिस पर कमिश्नर पदस्थ रहे...एस.के.वेद ने भी कथित रूप से पूरा सहयोग किया चूँकि एस.के.मिश्र के विरुद्ध मऊगंज न्यायालय में परिवाद दाखिल है, और वे लम्बे समय से मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव पदस्थ है, इस कारण वे भोपाल से रीवा में पदस्थ रहे कलेक्टर, कमिश्नर पर दबाव डालते रहे, जिसके परिणामस्वरूप एक अरब कीमती सरकारी संपदा बिक गई.

शिकायतकर्ता काशीप्रसाद की दर्दनाक कहानी

शासन हित में आवाज उठाने वाले तत्कालीन लिपिक काशीप्रसाद दुबे दर्दनाक दौर से गुजर रहे है, उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया..जिस व्यक्ति को इनाम देकर प्रोत्साहित करना चाहिए था, वह दाने-दाने का मोहताज होकर ठोकरें खाता फिर रहा है. आर्थिक आभाव से जूझ रहे काशीप्रसाद के बड़े बेटे की दो वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई. जमीन जायदाद गिरवी कर वे शासन के पक्ष में अदालत में केस लड़ रहे है. लंबी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट नें उनकी सेवा बहाल कर दी परन्तु उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली. फ़ाइल मंत्रालय, कलेक्टर और कमिश्नर की टेबिलों पर पिछले दस साल से ख़ाक छान रही है. काशी प्रसाद बेकसूर होते हुए भी जिन्दा मर चुके है, परन्तु उनका हौसला बरकरार है. उनका कहना है की भले ही बर्बाद हो जाऊं, जब तक इस घोटाले के एक-एक व्यक्ति को जेल नहीं भिजवा देता, तब तक शांत नहीं बैठूँगा. कशी प्रसाद दुबे 6 दिन यानी 31 मार्च 2014 को रिटायर हो रहे है, उन्हें उम्मीद है की इन 6 दिनों में वे बहाल कर दिए जाएगे. भूमि घोटाले के सरहंगो ने कई बार उन पर जानलेवा हमला भी कराया, जेल भेजने का षड़यंत्र रचा. परन्तु बदहाली का शिकार हो चुके काशीप्रसाद के हौसले पस्त नहीं हुए है...ई.ओ.डब्लू. नें अपनी जांच में उन्हें भी आरोपी बना डाला परन्तु बाद में न्यायालय नें उनका नाम खारिज कर दिया और स्वतंत्र गवाह में नाम शामिल कर लिया. बकौल काशीप्रसाद उन पर जितनी यातनाओं का दौर गुजरा उसके पीछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव एस.के.मिश्र का हाँथ है. अगर इस घोटाले से वे श्री मिश्र का नाम कटवा देते तो उन्हें आज इतने बुरे दिन न देखने पड़ते.

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