अतुल दुबे/खंडवा। यह हैं प्रवीण सिसौदिया। उम्र लगभग 50 साल। दिन में होमगार्ड सैनिक। रात में ऑटो चालक। जी हां, सिसोदिया रोज 15 घंटे काम करते हैं। अपने बच्चों की खातिर।
बेटा आईआईटी राउरकेला (ओडिशा) और बेटी इंदौर के निजी कॉलेज में पढ़ रही है। दोनों को बेहतर शिक्षा मिले, इसके लिए होमगार्ड की नौकरी से मिलने वाला मानदेय पर्याप्त नहीं था। इसीलिए वे रात में ऑटो चलाकर बेटा-बेटी की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं।
शहर की सर्वोदय कॉलोनी में रहने वाले सिसौदिया खुद हायर सेकंडरी तक पढ़े हैं। शाम 4 से रात 12 बजे तक कलेक्टोरेट में बतौर होमगार्ड सैनिक के रूप में ड्यूटी देते हैं। इसके बाद घर जाते हैं। तीन घंटे की नींद लेते हैं। फिर तड़के 3 बजे ऑटो लेकर निकल जाते हैं। सुबह 10 बजे तक ऑटो चलाते हैं। फिर घर आकर शाम 4 बजे तक आराम करते हैं। इसके बाद फिर सरकारी ड्यूटी पर जाते हैं।
पगार 9000 रुपए महीना पढ़ाई पर हर महीने 13000 खर्च
बेटे का नाम शिवम सिसौदिया है। वह आईआईटी राउरकेला (ओडिशा) में बीटेक कर रहा है। अभी तीसरा साल चल रहा है। पढ़ाई और वहां रहने पर हर साल 1.20 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं।
बेटी का नाम सोनाली सिसौदिया है। वह इंदौर के जगदाले कॉलेज से बीकॉम कर रही है। अभी सेकंड ईयर में है। साथ ही सीएस की भी तैयारी कर रही है। पढ़ाई पर लगभग 36000 रुपए सालाना खर्च हो रहे हैं। यानी 3000 रुपए महीना।
ऐसे हुई शुरुआत
सिसौदिया 1991 में होमगार्ड में भर्ती हुए। मानदेय 720 रुपए था। शादी के बाद परिवार बढ़ा। यह रुपए घर चलाने के लिए नाकाफी थे। 1996 में ऑटो खरीदा। तभी से ऑटो चला रहे हैं। बकौल सिसौदिया, जब तक बच्चे अपने पांव पर खड़े नहीं हो जाते ऑटो चलाता रहूंगा। एक ही सपना है कि बच्चे बेहतर शिक्षा लेकर श्रेष्ठ मुकाम हासिल करें।