राकेश दुबे@प्रतिदिन। इस बात का दावा भारतीय जनता पार्टी में कोई नहीं कर सकता कि जनता दल [यू] से आये साबिर अली कब तक भाजपा में टिकेंगे और उन्हें भाजपा में मौजूद उनके अपने टिकने देंगे ?
कभी सामूहिक निर्णय और नेतृत्व के लिए पहचानी जाने वाली भाजपा आज निर्णय संकट के उस दौर से गुजर रही है| जहाँ बौने कद के लोग कद्दावर नेताओं के कद की पैमाइश कर रहे हैं|
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पार्टी के निर्णय के इंतजार में है की वे झाँसी में ही रहे या रायबरेली भी जाएँ| पार्टी के प्रवक्ता टी वी चैनल पर उन्हें झाँसी में ही रहना होगा जैसी बात किस से पूछ कर कह रहे हैं, कहने वाले सुधांशु जी को भी शायद नहीं मालूम| मेरे फोन को तो उन्होंने उठाया नहीं| मेरे एक दिल्ली के मित्र को उनका जवाब था “संकट है कुछ तो कहना था, कह दिया|”
भारतीय जनता पार्टी में यह पहले सुनने को नहीं मिलता था| निर्णय सामूहिक होते थे, अब स्थिति यह आ गई है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपनी बात दिन में दो बार बदलना पड रही है| नारे को लेकर यही सब हुआ है| प्रमोद मुत्तालिक का प्रवेश और उसी दिन वापिसी का दरवाज़ा दिखाना आज साबिर अली का आना और नकवी का विरोध किस निर्णय प्रक्रिया की कमजोरी दिखा रहा है| आज जिस आशंका से नकवी डर रहे है कि दाउद भी कभी भाजपा में आ सकता है, उन्हें बहुत कुछ पता नहीं है|
साबिर अली का प्रवेश तीन दिन तक गुजरात में इंतजार का फल है| भाजपा में प्रवेश के पूर्व पूरी सहमति की प्रक्रिया पहले थी, स्वयं नकवी के प्रवेश पर डॉ मुरली मनोहर जोशी की आपत्ति और समाधान के किस्से से सब परिचित हैं| लगता है अब ऐसा कुछ बचा नहीं है|
प्रक्रिया का पालन अपने साथियों को नीचा दिखाने, अपने गुट को मजबूत करने, वरिष्ठों की अनदेखी करने में हो रहा है| पार्टी विथ डिफ़रेंस जो है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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