उपदेश अवस्थी/भोपाल। दिग्विजय सिंह के स्मरण मात्र से रूह तक कांप जाने वाले मध्यप्रदेश के कर्मचारियों ने विधानसभा चुनावों में भाजपा को तीसरी और शिवराज सिंह चौहान को दूसरी बार थोकबंद वोट थमाए, लेकिन सवाल यह है कि क्या आमचुनावों में मध्यप्रदेश के 10 लाख कर्मचारी भाजपा को वोट करेंगे।
सवाल सीधा लाभ हानि से जुड़ा हुआ है। मध्यप्रदेश के इतिहास में अकेले दिग्विजय सिंह ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने कर्मचारियों को कोई लाभ नहीं दिया, उल्टा उनके तमाम लाभ खत्म कर दिए। कई स्तर पर परेशानियां पैदा कीं। नतीजा सबके सामने है। उमा भारती मंच से कुछ भी भाषण देतीं रहें या भाजपाई किसी भी मुगालते में रहें लेकिन अंतिम सच यह है कि 2003 के विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश के कर्मचारियों ने कांग्रेस के खिलाफ ना केवल माहौल बनाया बल्कि वोट भी किए। इतना ही नहीं कई बूथों पर भाजपा के समर्थन में फर्जी वोटिंग भी करवाई। इसलिए नहीं कि कर्मचारी भाजपाई हो गए थे, बल्कि इसलिए क्योंकि वो दिग्विजय सिंह से बदला ले रहे थे।
शिवराज सिंह चौहान के सीएम बनते ही, उन्होंने कर्मचारियों के महत्व का ना केवल स्वीकार किया बल्कि उनके हित में कई निर्णय भी लिए। कर्मचारी प्रसन्न थे अत: 2008 के चुनावों मेें उन्होंने शिवराज को भरपूर आशीर्वाद दिया। शिवराज ने फिर आभार जताया। मंच से नहीं बल्कि आदेशों पर हस्ताक्षर करके। लम्बे समय बाद मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को केन्द्र के समान वेतन और सुविधाएं मिल रहीं हैं। 2013 के चुनावों में माहौल भाजपा के पक्ष में उतना मजबूत नहीं था, परंतु कर्मचारी शिवराज को व्यक्तिगत स्तर पर पसंद कर रहे थे। उनको मिले तमाम लाभदायक आदेशों के बदले कर्मचारियों ने भी आभार जताया। जो परिणाम आए सबके सामने हैं। आखिर करीब डेढ़ करोड़ वोट मैदानी कर्मचारियों की ही मदद ही कन्वर्ट हुए थे।
लेकिन अब आमचुनाव है। मैदान में शिवराज सिंह चौहान नहीं, नरेन्द्र मोदी हैं और वो कर्मचारी हितैषी हैं या नहीं, इसका फिलहाल मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को कोई आइडिया ही नहीं है। इसके विरुद्ध कांग्रेस है, जिसने कर्मचारियों के हित में कई फैसले किए। पहली बार डीए 100 प्रतिशत किया गया। प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार के आदेश जारी होने के बाद ही उसका अनुशरण किया।
अत: कर्मचारियों की नजर से देखें तो केन्द्र में कांग्रेस और मध्यप्रदेश में शिवराज की सरकार ही लाभदायक जोड़ी है। एनडीए ने कर्मचारियों के वेतन और सुविधाओं में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं की थी, अत: पिछले अनुभव अच्छे नहीं है। अब देखना रोचक होगा कि मध्यप्रदेश में कर्मचारियों का ऊँट किस करवट बैठेगा और यह तो निश्चित ही है कि भाजपा का मिशन 29 कर्मचारियों की कृपा पर ही निर्भर करेगा।