जब इतनी समस्याएं हैं तो कैसे जीतेंगी सुषमा स्वराज ?

विदिशा। वर्ष 2009 में एकतरफा मुकाबले में जीत दर्ज करने वाली भाजपा नेता सुषमा स्वराज विदिशा लोकसभा क्षेत्र की दूरियां तेजी से तय करने में लगी हैं। कर्क रेखा के पास बसा यह इलाका अप्रैल के महीने में भी मध्य प्रदेश के सबसे गर्म इलाकों में से एक हो गया है। सुषमा स्वराज रायसेन की मजार पर चादर चढ़ा रही हैं, मंदिरों पर जा रही हैं और सभाएं कर रही हैं। आप समझ सकते हैं कि यह मुकाबला पिछली बार की तरह एकतरफा नहीं है।

लक्ष्मण को भी जीत की उम्मीद
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने भाई लक्ष्मण सिंह को विदिशा से मैदान में उतार तो दिया है, लेकिन भाजपा की गढ़ मानी जाने वाली यह सीट मोदीमय माहौल में लक्ष्मण सिंह के लिए भी कोई आसान बात नहीं है। लक्ष्मण सिंह की सारी उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2013 के विधानसभा चुनाव में विदिशा सीट बड़ी मुश्किल से 11 हजार मतों के अंतर से जीती थी।

बीजेपी में बगावत से बढ़ीं सुषमा की मुश्किलें
वहां भाजपा के भितरघात से निपटना सुषमा स्वराज के लिए भी आसान नहीं। पूर्व वित्तमंत्री राघवजी का खेमा नुकसान तो पहुंचा ही सकता है। विदिशा से लगी हुई विधानसभा सीट बासौदा पर भी कांग्रेस के निशंक जैन जीते हैं। इछावर सीट पर कांग्रेस के शैलेंद्र पटेल ने शिवराज के कद्दावर मंत्री करण सिंह वर्मा को हराया है। लिहाजा सुषमा स्वराज का सारा दारोमदार बुदनी और भोजपुर सीटों पर आ गया है। बुदनी में किरार पटेलों के एक अन्य नेता राजकुमार पटेल निर्दलीय के तौर पर मैदान में हैं, वहीं सुरेंद्र पटवा को भोजपुर इलाके से सुषमा को बड़ी लीड दिलानी होगी।

मुस्लिम वोटों पर भी रहेगी नज़र
पिछले विधानसभा चुनावों में मुसलमानों के एक तबके ने शिवराज सिंह चौहान के नाम पर भाजपा को वोट दिए थे। रायसेन में कोंडीगांव के हनीफ खान बताते हैं, ‘पिछले विधानसभा में रायसेन के कई मुस्लिम नेता भाजपा में चले गए। अब उन्हें भाजपा के लिए काम करना होगा। सवाल यह है कि ये लोग मोदी के लिए वोट देंगे या नहीं।’ दिग्विजय सिंह भी इस बात को जानते हैं, इसलिए उनके भाषणों के केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं। स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले नितिन कांकर को सुषमा की जीत में कोई संदेह नहीं है।

सुषमा को बहाना पड़ेगा पसीना
शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री बनने से पहले विदिशा से 1996 से 2004 के बीच लगातार 4 लोकसभा चुनाव जीते थे। बल्कि यहां शिवराज इतने लोकप्रिय रहे हैं कि उन्हें 2004 में 4,28,030 वोट मिले थे। इतने वोट तो वाजपेयी को भी 1991 में नहीं मिले थे। अंतत: सुषमा यह सीट मोदी फैक्टर, शिवराज के समर्थन और उनके प्रोफाइल के कारण जीत सकती हैं लेकिन इसके लिए उन्हें पसीना बहाना पड़ेगा।

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