राकेश दुबे@प्रतिदिन। राम और राम मन्दिर पर जितनी बहस भारत में हुई है और हो रही है,उतनी बहस यदि किसी और विकास के मुद्दे पर होती तो भारत की वर्तमान तस्वीर बदल जाती| दुःख है कि “राम” आस्था के विषय से निकल कर राजनीति के औजार हो गये हैं |
कोई भी इस्तेमाल से नहीं चूक रहा है, वे जिनके आराध्य “राघव” के स्वरूप में हैं और वे भी जो धनुष बाणधारी “राम” के आगे नत मस्तक हैं| सभी इस होड़ में शमिल हैं कि कैसे राम के नाम पर अपने सामनेवाले को नीचा दिखाएँ |
आज भारतीय जनता पार्टी ने राम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण के मामले को 2014 के घोषणा पत्र में फिर से शामिल किया है | आज जो लोग भारतीय जनता पार्टी के इस कृत्य को धोखा, वोट बैंक की राजनीति और जाने और किन-किन विशेषणों से निन्दित कर रहे हैं , वे ही पिछले दिनों इस विषय को भजपा ने छोड़ दिया है, जैसे सवाल पूछते थे | पता नहीं ये कैसे राघव राम के उपासक हैं | वैसे राम किसी घोषणा पत्र के विषय होना ही नहीं चाहिए| “राम” और अयोध्या के राजा राम में अंतर है | भारतीय मनीषा तो घट-घट में व्याप्त राम की पक्षधर रही है |
भाजपा अब और तब कोसने वाले वोट के लिए क्या-क्या नहीं करते, कहाँ-कहाँ नहीं जाते और क्या-क्या नहीं कहलाते | और, भाजपा ही राम की कितनी पक्षधर है उसकी प्राथमिकता बताती है | घोषणा पत्र का अंतिम पृष्ठ और संवैधानिक दायरा | यह वही भाजपा है जो सौगंध खाती थी | “राम” मन्दिर मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारे के साथ हम सबके मन में बसा है,उन्हें वही रहने दें |उन्हें राजनीति का औजार मत बनाइए |
देश बनाने के लिए बहुत से मुद्दे हैं, दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में कई विषय एक समान है , उन पर सहमति बनाइए| देश बनेगा, और अपने राम को शांति मिलेगी |
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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