राकेश कुमार गिरी। पीएसीएल का मालिक कौन है, यह साफ नहीं है। लेकिन 57 साल के निर्मल सिंह भंगु पीएसीएल के प्रमोटर हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह मान लिया कि पीएसीएल कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम चलाती है, जिसे नियमित करने की जरुरत है तो इस कंपनी में निवेश करने वाले लाखों छोटे निवेशकों के पैसे डूबने तय हैं।
कंपनी पुरानी है, लेकिन बार-बार चर्चा में आती है। घोटालों को लेकर। बीते माह एक बार फिर पीएसीएल, पीजीएफ पर 45,000 करोड़ घोटाला का आरोप लगा है। पीएसीएल और पीजीएफ, पर्ल समूह की कंपनियां हैं। करीब पांच करोड़ निवेशक ठगे गए हैं इन कंपनियों की योजनाओं से। निर्मल सिंह भंगू सहित आठ निदेशकों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया।
दरअसल, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार, पर्ल समूह की दो कंपनियों पीएसीएल और पीजीएफ के परिसरों की तलाशी से पता चला है कि उन्होंने कथित रूप से पोंजी स्कीम में 45,000 करोड़ रुपये जुटाकर करीब पांच करोड़ निवेशकों को ठगा है। पीएसीएल और पीजीएफ के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए सीबीआई ने पीजीएफ के डायरेक्टर निर्मल सिंह भंगू और पीएसीएल के डायरेक्टर सुखदेव सिंह सहित कंपनी के छह अन्य निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पीएसीएल और पीजीएफ पर्ल समूह की कंपनियां हैं।
सीबीआई की प्रवक्ता ने बताया कि इन समूहों ने कृषि जमीन की बिक्री और विकास के नाम पर बनी सामूहिक निवेश योजनाओं के द्वारा पांच करोड़ भोले-भाले निवेशकों से धन जुटाया है। उन्होंने बताया कि दस्तावेजों के प्रारंभिक विश्लेषण से ही यह पता चल गया कि यह घोटाला कितना बड़ा है। गौरतलब है कि पोंजी स्कीम में निवेशकों को पिरामिड जैसी संरचना के द्वारा दूसरे जमाकतार्ओं से हासिल पैसे से रिटर्न दिया जाता है।
सीबीआई का कहना है कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि दिल्ली स्थित एक निजी कंपनी की जालसाजी और एक दूसरी कंपनी द्वारा निवेश जुटाकर कथित रूप से करीब 45,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है। कंपनियों ने यह पैसा कृषि जमीन की बिक्री और उसके विकास के नाम पर जुटाया है।
सूत्रों के मुताबिक, पहले सीबीआई को यह अंदाजा नहीं था कि यह घोटाला इतना बड़ा हो सकता है। कुछलैपटॉप खुलने के बाद ही यह पता चल सका कि पहले सीबीआई जो अनुमान लगा रही थी, वह तो ऊपर दिख रहा बस छोटा सा हिस्सा ही है। सूत्रों के अनुसार, सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की है। दोनों कंपनियों पर यह आरोप है कि उन्होंने अपनी पोंजी योजनाओं में जनता का पैसा जमा कर करोड़ों रुपये जुटाए हैं।
वर्तमान का सच यही है कि देश के विभिन्न राज्यों में लोगों की जमीन हड़प कर मोटी रकम ऐंठने वाली पीएसीएल लिमिटड कंपनी (रियल एस्टेट संबंधित) के खिलाफ सीबीआई ने आंखें तरेर दी है। एक बार फिर फरवरी के आखिर में सीबीआई की जांच तेज हो गई है। हालही में मल्टी करोड़ स्कैम में फंसी दो कंपनियों की जांच करने के लिए दिल्ली सीबीआई मुख्यालय से एक विशेष टीम चंडीगढ़ पहुंची। देशभर में जारी इन कंपनियों की पड़ताल के बाद टीम ने खरड़ और मोहाली में भी रिकार्ड खंगाले।
दिल्ली तथा चंडीगढ़ सीबीआई टीमों ने संयुक्त रूप से कंपनियों के चंडीगढ़, मोहाली और रोपड़ स्थित कार्यालयों में देरशाम तक छानबीन की। इस बीच अधिकारियों ने दस्तावेज भी जब्त किए। सीबीआई ने यह कार्रवाई दिल्ली में की पीएसीएल लिमिटड तथा इसकी सहयोगी कंपनी पीजीएफ लि. पर केस दर्ज किए जाने के बाद की। सीबीआई के अधिकारियों ने कहा कि अपैक्स कोर्ट के आदेश मिलने के बाद एजेंसी ने कंपनियों पर लगे आरोपों की जांच के लिए देश में फैले कंपनियों के कारोबार के रिकार्ड खंगालने का फैसला लिया। चंडीगढ़, मोहाली और रोपड़ के अलावा सीबीआई ने जयपुर और दिल्ली में भी कंपनी के कार्यालयों में छानबीन की।
मजेदार बात तो यह भी है कि पीएसीएल एक ऐसी कंपनी है जिसका कारोबार बताया जाता है हजारों करोड़ में, पीएसीएल एक ऐसी कंपनी है जो बताती है कि उसके पास हजारों एकड़ जमीन है, पीएसीएल एक ऐसी कंपनी है जो बताती है कि उसके पास सैंकड़ों करोड़ रुपए की संपत्ति है... लेकिन मजेदार तथ्य यह है कि इस कंपनी को महज 17.40 करोड़ रुपए का कर्ज एक बैंक से लेना पड़ता है। बात जरा पुरानी है, लेकिन है सच। पीएसीएल कंपनी ने 17.40 करोड़ रुपए का कर्ज 29 मार्च 2010 को पंजाब नेशनल बैंक से लिया था। इस कंपनी ने कथित तौर पर भूखंड बेचने के नाम पर जो 20,035.72 करोड़ रुपए की कमाई आम जनता से की है, वह पूरी तरह से जनता का निवेश भर है। कंपनी के खातों की पड़ताल से जानकारी मिलती है कि खातों में 10,076.87 करोड़ रुपयों की जमीन है लेकिन यह सारी की सारी विवादित बताई गई है। इस एकमात्र छोटी-सी बात से यह साफ हो जाता है कि कंपनी किस कदर झूठ और फरेब का सहारा लेकर तमाम निवेशकों को बेवकूफ बना रही है।
क्या काम करती है पीएसीएल?
पीएसीएल रियल इस्टेट, टिंबर इंडस्ट्री, हाइब्रिड सीड प्रोडक्शन, पर्यटन, रिसॉर्टस, निर्माण, भूमि विकास, टिशू कल्चर, बीमा और जमा योजनाओं के क्षेत्र में काम करती है। पीएसीएल पश्चिमी दिल्ली समेत पीएसीएल देश भर में करीब फैले करीब 280 आॅफिस के जरिए कारोबार करती हैं। पीएसीएल कंपनी कंपनी के डायरेक्टर एस भट्टाचार्य ने बताया, 'हम एक रियल एस्टेट कंपनी हैं। हम जमीन की खरीद-बिक्री के कारोबार में हैं। ग्राहक जमीन खरीदने के लिए हमें पैसा देते हैं।' सीबीआई ने रियल एस्टेट कंपनियों-पर्ल एग्रोटेक कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसीएल) और उसकी सहयोगी कंपनी पर्ल गोल्डन फॉरेस्ट लिमिटेड के प्रमोटरों-निर्मल सिंह भंगु और निदेशक सुखदेव सिंह के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया है। यह मुकदमा जमाकतार्ओं को कृषि भूमि दिलाने के नाम पर पिरामिड स्कीम चलाने के लिए किया गया है। आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश करने और धोखाधड़ी करने का मामला भी दर्ज कराया गया है। दो तरह की निवेश योजनाएं चलाती है पीएसीएल :
-इंस्टालमेंट पेमेंट प्लान (आईपीपी) सीधे शब्दों में रिकरिंग डिपॉजिट प्लान।
-कैश डाउन पेमेंट प्लान (सीडीपीपी) सीधे शब्दों में फिक्सड डिपॉजिट प्लान।
कंपनी के दावे के मुताबिक एक निवेशक को इस कंपनी से होने वाले अन्य लाभ
-कृषि से होने वाली आय की परिपक्वता पर कोई कर नहीं।
-बिना अतिरिक्त भुगतान के दुर्घटना बीमा कवरेज।
-कृषि निवेशकों को करीब 12.5 फीसदी ब्याज।
कहां-कहां फैला है कारोबार?
पीएसीएल राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश समेत देश के कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैला चुकी है। पीएसीएल का मालिक कौन है, यह साफ नहीं है। लेकिन 57 साल के निर्मल सिंह भंगु पीएसीएल के प्रमोटर हैं। निर्मल दावा करते हैं कि वह रियल एस्टेट कारोबार के दिग्गज रहे हैं। उनके मुताबिक वे आवासीय परिसरों, विला फार्म, अपार्टमेंट, होटल रिसार्ट, व्यवसायिक कांप्लेक्स और शापिंग मॉल बना चुके हैं।
8 लाख एजेंटों का जाल
पीएसीएल से जुड़े देश भर में 8 लाख एजेंट 'चेन मार्केटिंग' सिस्टम या पिरामिड सिस्टम के तहत काम करते हैं। चेन मार्केटिंग सिस्टम के तहत अगर एक एजेंट दूसरे शख्स को एजेंट बनाता है तो उसके जरिए निवेश की गई रकम में भी पहले एजेंट को कमिशन मिलता है। इस तरह से अगर दूसरा एजेंट भी किसी तीसरे को एजेंट बनाता है तो दूसरे को तीसरे एजेंट के जरिए हुए निवेश में भी कमिशन मिलेगा। जबकि पहले एजेंट को अपने जरिए हुए निवेश के अलावा दूसरे और तीसरे एजेंट के जरिए हुए निवेश का भी कुछ हिस्सा कमिशन के तौर पर मिलेगा। अगर कंपनी खतरे में पड़ती है तो सबसे ज्यादा उस एजेंट पर असर पड़ता है जो पिरामिड के सबसे आखिर में है चेन सिस्टम के अंतिम सिरे पर है।
क्या होता है लालच ?
ग्राहकों को पीएसीएल में पैसे लगाते समय जमीन के मालिकाना हक से ज्यादा इस बात का लालच दिया जाता है कि उनके द्वारा खरीदी गई जमीन की कीमत बहुत तेजी से बढ़ेगी। आम तौर पर जमीन की कीमत पर 12.5 फीसदी सालाना रिटर्न का दावा किया जाता है। कंपनी में निवेश की मियाद आम तौर पर 5-10 साल तक होती है।
कैसे निवेशकों को रखा जाता है धोखे में ?
पीएसीएल के कामकाज को जानने वाले बताते हैं कि कंपनी में जमीन खरीदने के नाम पर पैसे जमा करने वाले लोगों को टाइटल डीड नहीं दिया जाता है। लेकिन अगर कोई ग्राहक यह कहता है कि उसे जमीन के मालिकाना हक के कागजात नहीं मिला तो वह खुद को जमीन का मालिक कैसे कह सकता है तो पीएसीएल के लोग कहते हैं कि आप कंप्यूटर से बनाई गई रसीद दिखाकर अपने मालिकाना हक का दावा पेश कर सकते हैं।
सेबी मानता है अवैध
पश्चिमी दिल्ली सहित देश भर में फैले 280 आॅफिस से पीएसीएल जो कारोबार करती है, उसे सेबी अवैध मानता है। सेबी का मानना है कि यह कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीम है, जिसे रियल एस्टेट कंपनी के रूप में चलाया जाता है। हालांकि कंपनी के वास्तविक कारोबार के रूप में अभी अंतिम रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अंतिम फैसला देगा, जहां यह पिछले आठ वर्षों से लंबित है।इस दौरान पीएसीएल का कारोबार बढ़कर 100 गुना हो गया है। ग्राहकों ने प्लॉट बुक कराने के लिए कंपनी को ये पैसे दिए हैं। हालांकि ग्राहकों को वह प्लॉट दिखाया गया है और ना ही उन्होंने अपनी पसंद की जमीन का टुकड़ा खुद चुना है। पीएसीएल के पास जमा ग्राहकों का पैसा बढ़कर 20,000 करोड़ रुपए हो गया है। कंपनी इसे अग्रिम भुगतान बताती है।
रजिस्ट्रार आॅफ कंपनीज को दी गई जानकारी में कंपनी ने अपने पास 1.85 लाख एकड़ जमीन होने की बात कही है, जो पूरे बंगलुरु के बराबर है। इसके मुकाबले देश की बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ या यूनिटेक के पास सिर्फ 12,000-15,000 एकड़ जमीन है। जमीन से ज्यादा पीएसीएल के ग्राहकों की दिलचस्पी इसकी कीमतों में संभावित बढ़ोतरी से होने वाले फायदे पर है। कंपनी मामलों का मंत्रालय (एमसीए) ने देश भर के बड़े अखबारों में कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीमों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाकर ग्राहकों को सावधान कर रहा है।
एमसीए के सचिव डीके मित्तल के अनुसार, आॅनलाइन स्कीमों और दूसरी कलेक्टिव इनवेस्टमेंट स्कीमों के खिलाफ कई शिकायतें मिलने के बाद सरकार ने जागरूकता अभियान शुरू किया है।पीएसीएल की स्कीम पिरामिड स्कीम की तरह दिख सकती है और इसका काम करने का तरीका पिरामिड स्कीम की तरह हो सकता है, लेकिन इसे पिरामिड स्कीम नहीं कहा जाता।
इस कंपनी ने पिछले कुछ अरसे में जो घोटाला किया है, उसकी जानकारी सबको है। लेकिन एक बात जो निवेशक नहीं जानते हैं, वो ये है कि इस कंपनी ने अपने घोटालों पर परदा डालने के लिए कई तरह के प्रपंच रचे हैं। यह कंपनी बताती है उस पर सेबी के नियम कायदे लागू नहीं होते हैं, यह भी बताती है कि उस पर इरडा के नियमों का पालन करने की बाध्यता भी नहीं है। लेकिन सच तो यह है कि जिस तरह का कामकाज यह कंपनी करती है, वह पूरी तरह से इन रेगुलेटरी बाडीज के नियमों के तहत ही आता है।
इस बारे में विशेषज्ञों की राय यही है कि इस कंपनी ने बड़े पैमाने पर अपनी ही कंपनी के अंदर ऐसे गोलमाल किए हैं, जिनके बाहर आने पर इस कंपनी का कामकाज पूरी तरह से ठप्प हो जाएगा। इस कंपनी के कुछ एजंटों, फील्ड आफीसरों से बात करने और उनके इंटरव्यू करने पर यह साफ हो गया है कि कंपनी पूरी तरह से एलएमएल कंपनियों की तरह ही काम कर रही है।
इतना ही नहीं, इस कंपनी द्वारा अपनी कथित भूखंड बेचने की व्यवस्था भी बैंक की तरह ही एफडी और आरडी बेचने के नाम पर ही होती है। इस कंपनी के जितने भी एजंट जब भी कोई भूखंड बेचने की बात करते हैं तो वे यह नहीं कहते हैं कि जमीन का टुकड़ा बेच रहे हैं, वे यही कहते हैं कि आरडी या एफडी की स्कीम दे रहे हैं। इसका साफ मतलब यही है कि यह कंपनी अपने एजंटों को यही सिखाती है कि वे भोले-भाले निवेशकों को एफडी और आरडी के नाम से बेवकूफ बनाएं।
ऐसा नहीं है कि पीएसीएल पर पहली दफा जांच का शिकंजा कसा हो। समय-समय पर इस कंपनी पर जांच होती रही है। यह कंपनी अन्य चिट फंड कंपनियों की तरह मीडिया के क्षेत्र में भी दखल रखती है। ताकि अपने हिसाब से चीजों को मैनुपुलेट किया जा सके।
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि पर्ल्स की मदर कंपनी पीएसीएल पहले जनता को बेवकूफ बनाकर पैसे जमा कराते हैं, फिर उस पैसे से अखबार चैनल खोलते हैं और उसके बाद दलाली करके अपनी कंपनी को प्रामाणिक बनाने का खेल करते हैं। लेकिन बीते कुछ सयम से मध्य प्रदेश में इन चिटफंड कंपनियों के खिलाफ जो सरकारी अभियान चला हुआ है, उससे चिटफंड कंपनियों के मालिकों की नींद हराम हो चुकी है। बीते वर्ष में ग्वालियर-चंबल संभाग में कई कंपनियों के दफ्तर सील किए गए और इन कंपनियों के संचालकों समेत 98 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे।
ये कम्पनियां लोगों को पैसे दोगुने करने का लालच देकर करोड़ों रुपए डकार चुकी हैं जबकि इनको आरबीआई से कोई लाइसेंस नहीं मिला है। प्रशासन के मुताबिक सिर्फ ग्वालियर में ही चिटफंड कंपनियां एक हजार करोड़ रुपये समेट चुकी हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में चीटफंड कंपनियों पर पड़ रहे छापे से छत्तीसगढ़ शासन पूरी तरह लापरवाह है। उसे लगता नहीं कि उसकी जनता को फर्जी चीटफंड कंपनी से बचाना चाहिये। खासकर रायगढ़ में जहां गरीब किसान अपनी जमीन के मुआवजा के पैसों को चीटफंड कंपनियों को बिना जांचे परखे दे देती है और इन कंपनियों के एजेंट इन किसानों को फांसकर उनके जीवन की गाढ़ी पूंजी हजक कर रहे हैं। इन्हीं कंपनियों में से एक है पीएसीएल जिस पर 2005 में रायगढ़ जिला प्रशासन ने शिकंजा कसा था पर आज इस कंपनी का धंधा बेखौफ चल रहा है और उसका तर्क ओवर सलाना करीब 25 करोड़ हो गया है।
हैरत और दु:ख की बात यह है कि यहां का प्रशासन इस तरफ से पूरी तरह आंखें मुंदी हुई है। जबकि पूरे देश में पीएसीएल की शाखाओं में छापेमारी हो रही है पर यहां का प्रशासन अपने जनता को सरेआम लूटते हुए देखकर उस तरफ से अपनी आंखें बंद कर ली है या उनके आंखों पर पट्टी लगा दी गई है। पीएसीएल यानी पल्स एग्रो लिमिटेड पल्स का मतलब तो मोती है पर रायगढ़ के किसानों के पैसों में गोता लगाकर ये अनमोल मोती बटोर रहे हैं। कंपनी कहती है कि निवेशकों की पूंजी को जमीन खरीदी में लगाती है पर इनके शाखा प्रबंधकों को पता नहीं होता कि किस ग्राहक या निवेशक के पैसे से कहां की जमीन खरीदी गई है। अगर जमीन की खरीदी हुई भी है तो कहां? छत्तीसगढ़ में? जी नहीं! इन्होंने छत्तीसगढ़ में सिर्फ दो जगह जमीन खरीदी है पेण्ड्रा और रायगढ़ के नटवरपुर में। पेण्ड्रा में फजीर्वाड़ा करके वन विभाग का फॉरेस्ट लैण्ड ले लिया और नटवरपुर में आदिवासियों की जमीन हड़प ली। लिहाजा दोनों जगह की जमीनों की फाइल अदालतों की धूल खा रही है। मामला उच्च न्यायालय में लंबित है।
अब बताइये, इन जमीनों से यह कंपनी कैसे पैसे कमायेगी और निवेशकों का पैसा आखिर कैसे लौटायेगी? इनकी और जो जमीनें हैं वे आंध्रप्रदेश और राजस्थान के विरान इलाकों में जहां निवेशक उस जमीन के नाम पर शायद ही निवेश करें। बड़ी बात यह कि इस कंपनी के शाखा प्रबंधक भी इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि आखिर निवेशकों से जिस जमीन के दम पर उनसे पैसे लिये जा रहे हैं वे कहां और किस हाल मे हैं।
अभी ग्वालियर में जब 33 चीटफंड कंपनियों पर शिकंजा कसा गया तब ये बात सामने आई कि सभी कंपनियों ने पीएसीएल कंपनी की ही तर्ज पर अपनी दुकान खोली है और उनका धंधा चल निकला है। यहां तक कि पीएसीएल की तर्ज पर ही कई चिटफंड कंपनियों ने अपने अखबार और न्यूज चैनल भी खोल रखा है। अब सवाल ये उठता है कि म.प्र. शासन ने जब इस मामले में अपने गृह राय मंत्री के दामाद बाबूलाल कुशवाह को नहीं बख्शा तो छत्तीसगढ़ शासन और रायगढ़ जिला क्या यहां के लोगों को और लूटने का इंतजार कर रही है?
क्या यह हद नहीं है कि पीएसीएल जैसी कंपनी के गरीब आदिवासियों को गैर आदिवासी बताकर 250 एकड़ जमीन हड़प ली। क्या यह हद नहीं कि पेण्ड्रा के वनभूमि पर इसके कब्जा करने की कोशिश की। आखिर सरकार इसे सहने को मजबूर क्यों हैं। प्रशासन के लोगों ने जब इनसे तमाम फाइलें मंगवाई और जांच में कंपनी के विरूध्द अपने मंतव्य दिये तब करवाई क्यूं नहीं की जा सकी। जब रिजर्व बैंक के ज्ञानी यहां पुलिस को रिजर्व बैंक की वारिकियों का ज्ञान बांट रहे हैं तो उस ज्ञान के बिना पर पुलिस कार्रवाई नहीं कर सकती? या बस अखबारों में फोटो छपवाने भर से पुलिस का काम पूरा हो जाता है?