श्रीकांत शर्मा। किसान विकास पत्र यानी केवीपी की वापसी उन लोगों के लिए अच्छी खबर है, जो छोटी रकम को निवेश करना चाहते हैं और जो शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड के जोखिम को पंसद नहीं करते। ऐसे लोगों को निवेश के विकल्प देना इसलिए भी जरूरी है कि उन्हें चिटफंड कंपनियों जैसे गैर-भरोसेमंद विकल्प की तरफ जाने से रोका जाए।
अपने पिछले बजट भाषण में केवीपी की घोषणा करते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसका जिक्र किया था। अब कोई भी एकल या संयुक्त तौर पर विकास पत्र खरीद सकता है। इन्हें डाकघर या निर्धारित बैंक शाख में नकद, चैक या डिमांड ड्राफ्ट के जरिये खरीदा जा सकता है। केवीपी पर 8.7 प्रतिशत ब्याज मिलेगा, जो एक साधारण निवेशक के लिए आकर्षक और सुनिश्चित रिटर्न है। इस मामले में यह बाकी बचत योजनाओं से बेहतर विकल्प है।
केवीपी की शुरुआत 1988 में हुई थी। दो दशक से अधिक समय तक यह योजना बेहद लोकप्रिय रही, लेकिन संप्रग सरकार ने 2011 में इसे बंद कर दिया। अब इस योजना को दोबारा शुरू करने के दो मुख्य कारण हैं- पहला, पिछले कुछ वर्षों में देश में बचत और निवेश की दर नीचे आ गई है। जो बचत दर 36 प्रतिशत होती थी, आज 30 प्रतिशत से नीचे है। इसके चलते अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सुस्त पड़ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर की क्षमता सालाना आठ से नौ प्रतिशत विकास दर की है, लेकिन 2012-13 और 2013-14 में लगातार दो साल विकास दर पांच प्रतिशत से नीचे रही, इसलिए विकास दर को ऊपर उठाना जरूरी है। दूसरा कारण यह है कि हाल के वर्षों में आम लोगों के चिटफंड और पोंजी स्कीमों के जाल में फंसने की बहुत-सी घटनाएं सामने आई हैं।
विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में गत वर्षों में छोटे-बड़े कई चिटफंड घोटाले सामने आए हैं। बैंकिंग सुविधा के अभाव की वजह से लोग अपनी गाढ़ी कमाई को चिटफंड में रखने को मजबूर रहे हैं। कुछ राजनीतिक दलों ने अपने निहित स्वार्थो से पोंजी स्कीमों को प्रश्रय भी दिया। कांग्रेस पार्टी इस तर्क के साथ इसका विरोध कर रही है कि केवीपी से काला धन सृजित होगा। यह आरोप तथ्यों से परे है। केवीपी के लिए बने नियमों में इसका दुरुपयोग रोकने के स्पष्ट और ठोस प्रावधान हैं। इसके अनुसार केवीपी खरीदने वाले को एक आवेदन डाकघर या बैंक शाखा में प्रस्तुत करना होगा, जिसमें उसे अपना नाम, जन्मतिथि के साथ-साथ अपनी पहचान और आवास के प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे। साथ ही उसे एक गवाह के हस्ताक्षर भी कराने होंगे।
अगर निवेश की धनराशि 50 हजार रुपये से अधिक है, तो पैन कार्ड की फोटोकॉपी भी जमा करनी होगी। यह व्यवस्था बैंकों में खाता खुलवाने के केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) प्रावधान में अपनाई जाती है। यह विरोध पूरी तरह राजनीतिक है और इस तर्क में कोई दम नहीं।
लेखक श्रीकांत शर्मा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं।