राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत ने भले ही किसी और कारण से मौत की सजा पर प्रतिबन्ध का विरोध किया हो, परन्तु देश में घट रहे अपराधों को देखते हुए या निर्णय सटीक है| अभी अपराध सुधार की दिशा में बहुत काम होना बाकि भी है| भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मौत की सजा पर प्रतिबंध वाले प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया है और तर्क दिया है कि इससे हर देश की अपनी कानूनी प्रणाली के ‘‘संप्रभु अधिकार’’ और अपने कानून के मुताबिक अपराधियों को दंड देने के अधिकार का हनन होता है।
‘मौत की सजा पर प्रतिबंध’ के मसौदा प्रस्ताव को पिछले हफ्ते महासभा की तीसरी समिति में मंजूरी दी गई थी जो सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक मामलों को देखता है। भारत उन 36 देशों में शामिल है जिन्होंने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। प्रस्ताव के पक्ष में 114 वोट पड़े जबकि 36 देश अनुपस्थित रहे।
प्रस्ताव के मुताबिक महासभा अपने सदस्य राष्ट्रों से अपील करेगी कि मौत की सजा पर रोक लगाई जाए और 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों, गर्भवती महिलाओं और मानसिक या बौद्धिक रूप से विकलांग लोगों को मौत की सजा नहीं दी जाए।
भारत ने कहा कि प्रस्ताव में मौत की सजा को खत्म करने के दृष्टिकोण से इस पर प्रतिबंध को बढ़ावा देना शामिल है। संयुक्त राष्ट्र में प्रथम सचिव मयंक जोशी ने कहा कि भारत ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया क्योंकि यह ‘‘हमारे वैधानिक कानून के खिलाफ’’ जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रस्ताव में मूल सिद्धांत की अनदेखी की गई कि हर देश को अपनी कानूनी प्रणाली तय करने का संप्रभु अधिकार है और कानून के मुताबिक अपराधियों को दंडित करने की अपनी व्यवस्था है।’’उल्लेखनीय है की भारत में ‘‘विरलतम’’ मामलों में मौत की सजा दी जाती है जहां ‘‘अपराध इतना जघन्य हो कि वह समाज की संवेदना को झकझोर दे।’’
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