एड्स: अब अपने हाथ बचाने की कवायद शुरू

भोपाल। किसी भी मामले में यदि मप्र का परफार्मेंंस खराब आ जाए तो प्रशासनिक मशीनरी एक ही फामूर्ला यूज करती है, सिस्टम और समाज के सर पर सारा दोष मढ़ देती है। एड्स के मामले में भी मप्र के अफसरों ने ऐसा ही करना शुरू कर दिया है।

अब तक ज्यादा से ज्यादा एड्स मरीजों की संख्या बताकर ज्यादा से ज्यादा बजट प्राप्त करने वाले अफसरों ने अब उल्टी दलीलें देना शुरू कर दिया है। अफसरों का कहना है कि लोग इलाज कराने में संकोच करते हैं, एलोपैथी पर भरोसा नहीं करते, एक ही मरीज का नाम तीन तीन बार दर्ज है। नाम पते फर्जी हैं और पता नहीं क्या क्या। अफसरों ने यह नई कहानियां इसलिए शुरू कीं हैं क्योंकि मप्र, देश का सबसे बड़ा एड्स पीड़ित राज्य घोषित हो गया। कल तक इलाज के नाम पर बजट बनाने वाले अब इज्ज्त बचाने में लगे हैं।

मध्यप्रदेश में 2005 से लेकर अब तक 39114, एचआईवी पाजीटिव खोजे जा चुकें हैं। इनमें 40 फीसदी से ज्यादा को एड्स भी हो चुका है। इसके बाद भी 9000 से ज्यादा एचआईवी पाजीटिव ऐसे हैं जो आज तक एआरटी (एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट) सेंटर नहीं पहुंचे हैं। महज 31,000 मरीज ही एआरटी सेंटर में पंजीकृत हुए हैं।

मप्र एड्स कंट्रोल सोसायटी (एमपीसैक)के अधिकारियों ने बताया कि पिछले 10 सालों में प्रदेश में इस बीमारी से लगभग 6500 मरीजों की जान जा चुकी है। इनमें 2000 ऐसे हैं जो इलाज के लिए सामने ही नहीं आए। एआरटी सेंटर नहीं आने वाले मरीजों खोजने में मप्र एड्स कंट्रोल सोसायटी को भी पसीना आ रहा है। इसकी वजह यह कि इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एण्ड टेस्टिंग सेंटर(आईसीटीसी) में किसी ने अपना नाम गलत लिखाया है तो किसी ने पता।

कुछ ने अपने ठिकाने बदल लिए हैं। एमपीसैक के अधिकारियों ने कहा कि एचआईवी पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड बनाए जा रहे हैं। इस व्यवस्था से इन मरीजों को ढूंढना आसान हो जाएगा। उनकी फोटो व अन्य पहचान के आधार पर उनकी पड़ताल की जाएगी। इसके बाद काउंसिलिंग कर उन्हें एआरटी सेंटर भेजा जाएगा।

3700 पीड़ितों को खोजने की मुहिम शुरू
मप्र राज्य एड्स नियंत्रण समिति ने 3700 एचआईवी पीड़ितों के नाम छाटे हैं, जिन्हें खोजकर एआरटी सेंटर लाना है। इनमें कुछ पीड़ित ऐसे हैं, जो इलाज लेना शुरू कर दिए थे और कुछ आज तक एआरटी सेंटर में पंजीकृत ही नहीं हुए हैं। मप्र एड्स कंट्रोल सोसायटी के अधिकारियों ने बताया कि अब तक 1600 की ट्रेकिंग की जा चुकी है। इनमें 513 ने एआरटी केन्द्र आने की सहमति दी है और 250 आ भी चुके हैं। 57 पीड़ितों ने कहा है कि वे निजी डॉक्टर से इलाज कराएंगे। इतने ही मरीजों ने यह कहकर एआरटी सेंटर आने से मना कर दिया है कि उनका एलोपैथी में भरोसा नहीं, दूसरे पद्घति से इलाज कराएंगे।

18 से 20 फीसदी डुप्लीकेट
मप्र एचआईवी पीड़ितों की संख्या कागजों में भले ही 39 हजार है, लेकिन हकीकत यह है कि इनमें 18-20 फीसदी, यानि करीब छह हजार डुप्लीकेट हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनका तीन से चार बार नाम दर्ज है। तीन फीसदी पीड़ित ऐसे हैं जो दूसरी जगह चले गए हैं।

आंकड़े एक नजर में
एचआईवी पीड़ितों की संख्या- 39114
एआरटी में पंजीकृत - 31000
अब तक मौत - 6500
प्रदेश में एआरटी केन्द्र - 22

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मरीज कई जगह जांच कराते हैं। इस वजह से कुछ का नाम दो-तीन जगह पंजीकृत हो जाता है। जो मरीज एआरटी सेंटर नहीं आते उन्हें खोजा जाता है। हाल ही में ऐसे 500 मरीजों को खोजकर फिर से एआरटी सेंटर आने के लिए तैयार किया गया है।
प्रशांत मलैया
डिप्टी डायरेक्टर, एपीसैक

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