भोपाल। भारतीय संविधान मेंं आत्महत्या एकमात्र ऐसी क्रिया थी जिसमें सफल होने पर सदभावनाएं मिलतीं थीं परंतु बिफल हो जाने पर पुलिस का पचड़ा। धारा 309 के तहत आत्महत्या का प्रयास दंडनीय अपराध हुआ करता था परंतु आत्महत्या का प्रयास अब दंडनीय अपराध नहीं होगा।
केंद्र सरकार ने इसे अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 309 को समाप्त करने का फैसला किया है। गृह मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इस धारा को हटाने के संबंध में 22 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने सहमति दी थी। राज्यों का रुख जानने के बाद ही केंद्र सरकार ने इस धारा को समाप्त करने का फैसला किया।
गृह राज्यमंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने राज्यसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय विधि आयोग ने अपनी 210 वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 जो आत्म हत्या के प्रयास को दंडनीय अपराध बनाती है को कानून की पुस्तक से हटा दिया जाए। मंत्री ने कहा कि कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए विधि आयोग की की सिफारिश पर सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की राय मांगी गई थी। केंद्र को 18 राज्यों व 4 केंद्रशासित प्रदेशों से इस धारा को समाप्त करने के समर्थन में जवाब मिला। राज्यों की राय को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस धारा को कानून की पुस्तक से हटाने का निर्णय लिया है।
केंद्र सरकार के आंकड़े के मुताबिक हर साल लाखों लोग आत्महत्या के प्रयास करते हैं। वर्ष 2012 के दौरान देश में सभी आयुवर्ग के बीच कुल एक लाख 35 हजार 445 आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं। सबसे ज्यादा आत्म हत्या 34.5 फीसदी युवा वर्ग के लोग कर रहे हैं। एक साल में हुई आत्महत्याओं में युवाओं की संख्या 46 हजार 635 के करीब थी। यह सभी युवा 15 से 29 साल के बीच आयुवर्ग के थे।
जिम्मेदारियों के बोझ से भी आत्महत्या करने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। वर्ष 2012 के दौरान 30 से 44 वर्ष की आयुसीमा के बीच के करीब 34.1 फीसदी लोगों ने आत्महत्या की। यह संख्या 46 हजार160 थी। 45 से 59 साल की उम्र में करीब 21 फीसदी लोगों ने मौत को गले लगे लगा लिया। 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले वृद्ध 8.4 फीसदी और 14 साल की उम्र तक के बच्चों में करीब 2 फीसदी ने तनाव के चलते मौत को गले लगा लिया।
केंद्र सरकार के सूत्रों ने कहा कि आत्महत्या के लिए तनाव बड़ी वजह बनता है। जीवन में समस्याओं से उलङो लोग,करियर या प्यार में निराशा,कर्ज की मजबूरी,लंबी बीमारी और घरेलू मजबूरियों से उपजा तनाव आत्महत्या की वजह बनता है। सरकार का कहना है कि देश के कुछ जिलों में आत्महत्या निवारक सेवाएं शुरू की गई हैं। कार्यस्थल पर तनाव प्रबंधन के इंतजाम किए गए हैं। विद्यालयों व महाविद्यालयों में जीवन कौशल प्रशिक्षण व परामर्श के अतिरिक्त जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को भी सरकार ने मंजूरी दी है।