12 साल की मासूम बालिका बनेगी सन्यासन

इंदौर। उसे पता है कि उसकी 12 साल की उम्र खेलने-कूदने की है, स्कूल जाने, पढ़ने-लिखने और रुतबे के लिए मेहनत करने की है... लेकिन उसे यह भी पता है कि जीवन का सच इससे बड़ा है, उसके नाम का मतलब स्वयं को अर्पित करने की भावना है और उसका अंतिम फैसला वैराग्य है।

ये है विद्यांजलि इंटरनेशनल स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली अर्पिशा, जिसका सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया है और उसने दीक्षा लेने का निर्णय लिया है। संपन्न् परिवार की इकलौती लाड़ली बेटी ने वैराग्य की मुश्किल डगर पर चलने का फैसला लिया है। उसके निर्णय में माता-पिता तथा समाज सहभागी है। स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों ने समझाया भी, लेकिन पढ़ने में अव्वल अर्पिशा फैसले पर भी अव्वल और अडिग है।

अर्पिशा का पांच दिनी दीक्षा समारोह 8 से 12 फरवरी तक कालानी नगर में साधु-संतों की मौजूदगी में होगा। साध्वी बनकर वह साध्वी भक्तिपूर्णा के संघ में शामिल होगी। अर्पिशा ने बताया कि मम्मी-पापा को भी मैंने साधु-भगवंतों की सेवा करते देखा है। साधु जीवन की कठिनाइयों के बारे में मुझे पता है। साधु-भगवंतों के आशीर्वाद से मुझे कोई परेशानी नहीं आएगी। पिछले 7 महीने से मैं उनके सानिध्य में जीवन व्यतीत कर रही हूं। इससे पहले तप-आराधना के कई सत्र पूरे किए हैं।

सच्चे माता-पिता वे, जो बच्चे के जन्म-जन्म का ध्यान रखें
सच्चे माता-पिता वे हैं, जो बच्चों के जन्म-जन्म के कल्याण का ध्यान रखें। उसके दीक्षा के निर्णय पर मैं प्रसन्ना हूं। इतनी कम उम्र में उसने परिपक्व निर्णय लिया है। साधु जीवन से अवगत होने के लिए उसने दो बार 47 और 36 दिन साध्वी की तरह व्यतीत किए। इसके बाद यह निर्णय लिया।
अंजिता संघवी, मां

सांसारिक जीवन में भी मुश्किल कम नहीं
हम तीन भाई हैं। संयुक्त परिवार में धार्मिक प्रभावना है। अर्पिशा का रुझान भी बचपन से इस ओर रहा है। संतों का सानिध्य उसे पसंद है। हम भी चाहते हैं कि वह वैराग्य की राह पर चलकर स्वयं और समाज का कल्याण करे। जहां तक कठिनाइयों का सवाल है तो सांसारिक जीवन में भी मुश्किल कम नहीं हैं।
पिंकेश संघवी, पिता, कपड़ा व्यवसायी

पढ़ने-लिखने में तेज
अर्पिशा पढ़ने-लिखने में तेज है। जब उसके स्कूल छोड़ने का कारण पता चला तो हम लोगों ने उससे तथा उसके परिजन से बात कर समझाने का प्रयास किया, लेकिन बच्ची का भी इस ओर बहुत अधिक रुझान था। इतने बड़े निर्णय के लिए यह उम्र कम है।
रुचि गांधी
प्राचार्य, विद्यांजलि इंटरनेशनल

वैराग्य की कोई उम्र नहीं
वैराग्य की कोई उम्र नहीं होती। जब वैराग्य जागे उसे धारण कर लेना चाहिए। सही समय पर सही निर्णय लेना चाहिए। सोचने वाला व्यक्ति सोचता ही रह जाता है।
मुनि पुलकसागर, जैन संत

ऐसा होगा दीक्षा कार्यक्रम
8 फरवरी : संयम के कपड़े रंगे जाएंगे।
9 फरवरी : मौसरा और शाम को कुमार पाल राजा की आरती होगी।
10 फरवरी : वर्सीदान यात्रा। सांसारिक वस्त्र-अलंकरण का त्याग।
11 फरवरी : सुबह 9 बजे दीक्षा की क्रियाएं। संत वेषधारण, नया नाम मिलेगा।
12 फरवरी : नूतन साध्वी का पारणा।

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