हमारा देश धर्म-निरपेक्ष देश है। कितना है और कब से है? यह शोध का विषय है। मिलजुल कर रहना और एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होना कौन नहीं चाहता? सभी समुदायों में, सभी धर्मावलम्बियों और सम्प्रदायों में सौमनस्य बढ़े और धार्मिक उन्माद घटे, आज की तारीख में समय की मांग यही है।
मगर यह तभी सम्भव है जब सभी धर्मानुयायी ऐसा मन से सोचें और चाहें। लगभग 25 वर्ष पूर्व कश्मीर में पंडितों के साथ जो अनाचार और तांडव हुआ उसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है। घाटी में रह रहे पंडितों के साथ रोंगटे खड़ी करने वाली जो बर्बरतापूर्ण घटनाएं हुईं, उन्हें कश्मीरी पंडित समाज अब तक भूला नहीं है।
कितने ही मासूम कश्मीरी पण्डित महिलाओं, युवाओं और बुज़ुर्गों को कैसे बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया, यों इसके उदाहरण कई हैं पर यहाँ पर सरला भट नाम की एक नर्स का उल्लेख विशेष रूप से किया जा रहा है। कश्मीर के अनंतनाग ज़िले की रहने वाली यह सेवाभावी महिला श्रीनगर के सौवरा अस्पताल में नर्स का काम करती थी। मानव-सेवा के बदले में उसे जो फल मिला वह शर्मसार करने वाला है। पहले तो जिहादियों/आतकंवादियों द्वारा उसे अगवा किया गया, फिर उसका सामूहिक बलात्कार किया गया और बाद में उसके शरीर को चीर कर सरे बाज़ार घुमाया गया। यह बात मैंने सुन रखी थी। आज किसी ने वह चित्र मुझे भेजा जिसे देख मेरा कलेजा मुंह को आ गया।
धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकार के लम्बरदारों के मुंह पर तमाचा जड़ने वाला और आँखों में आंसू लाने वाला यह चित्र सचमुच रुलाने वाला है। सरला भट सच्ची देश भक्तिन थी। सुना है उसने सुरक्षा कर्मियों को अस्पताल में चुपचाप इलाज करा रहे आतंकियों के ठिकानों का पता बताया था जिसकी कीमत उसे बेदर्दी के साथ चुकानी पड़ी। शायद सच्चे राष्ट्रभक्तों की यही नियति होती है!
नई सरकार से मेरा अनुरोध है कि वीरगति को प्राप्त हुयी कश्मीर की बहादुर बेटी सरला भट के उत्सर्ग और उसकी राष्ट्रभक्ति को ध्यान में रखते हुए उसे मरणोपरांत दिए जाने वाले किसी उपयुक्त अलंकरण से नवाज़ा जाना चाहिए। कश्मीर की इस देशभक्त वीरांगना (बेटी) के नाम पर कोई स्मारक भी बने तो यह लाखों पंडितों की आहत भावनाओं की कदरदानी होगी और साथ ही देश की सुरक्षा हेतु आत्मोत्सर्ग की भवना रखने वालों के प्रति यह बहुत बड़ी कृतज्ञता होगी
डॉ0 शिबन कृष्ण रैणा
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