नई दिल्ली। भले ही बीजेपी ज्वाइनिंग की खबरों का ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पुरजोर खंडन किया हो परंतु इस खबर को वो खंडन नहीं कर पाएंगे कि कांग्रेस की बैठकों में वो लगातार अनुपस्थित बने हुए हैं। प्रेस में भी वो मोदी के विरुद्ध और कांग्रेस के समर्थन में बयान जारी नहीं कर रहे हैं, जैसा कि वो पहले करते रहे हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जनता को लुभाने की अद्भुत क्षमता है और इसका प्रदर्शन वो पिछले 5 सालों में कई बार कर चुके हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस का सूर्य उदय होता भी प्रतीत नहीं हो रहा था तब अचानक सिंधिया ने प्रचार समिति की कमान संभाली और देखते ही देखते पूरे प्रदेश में शिवराज की लहर थमती सी दिखाई दी, लेकिन अंत समय में हुई आंतरिक राजनीति ने सिंधिया की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। टिकिटों का बंटवारा कुछ इस तरह हुआ कि एक बार फिर शिवराज की आंधी चल पड़ी और मध्यप्रदेश में भाजपा जबर्दस्त बहुमत के साथ जीती।
इसके बाद से ही लगातार सिंधिया कांग्रेस से कटते हुए दिखाई देने लगे। इस घटना के बाद सिंधिया भाजपा के खिलाफ उतने आक्रामक नहीं हुए जितने कि वो विधानसभा चुनावों के दौरान या उससे पहले दिखाई दे रहे थे।
हालांकि सिंधिया अकेले नहीं है जिन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली है। इस लिस्ट में कांग्रेस के कई अन्य दिग्गजों के नाम भी शामिल है। कभी सरकार का चेहरा माने जाने वाले नेता कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, पी. चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, संदीप दीक्षित, मनीष तिवारी, जैसे दिग्गज कांग्रेसी अब पार्टी से नजरें बचा कर चल रहे हैं। कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए सरकार व पार्टी में प्रमुख पदों पर रहे इन नेताओं ने पार्टी बैठकों में आना बंद कर दिया है। इसके साथ ही प्रेस में पार्टी का पक्ष रखने से भी तौबा कर ली है।
इसी तरह, मीनाक्षी नटराजन, कृष्ण बी. गौड़ा, शक्ति सिंह गोहिल जैसे नेता भी पार्टी की बैठकों से दूरी बनाए हुए हैं। जबकि, ये सारे नेता पार्टी का पक्ष रखने के लिए अधिकृत रहे हैं।
सलमान खुर्शीद कभी-कभार प्रेस में दिखाई देते हैं, लेकिन कम्युनिकेशन विभाग की बैठक में उनकी मौजूदगी नहीं के बराबर रही है। इसी तरह संदीप दीक्षित भी कम्युनिकेशन विभाग से तालमेल न बैठने के कारण अलग राह पर चल रहे हैं। विभाग के पुनर्गठन के बाद से यदा-कदा अपनी बात कहने वाले संदीप ने पार्टी पोडियम से या पार्टी दफ्तर आकर कोई बात नहीं कही। इसी तरह पी. चिदंबरम भी पार्टी कार्यालय से दूर ही रहे हैं, जबकि उनपर भी पार्टी का पक्ष रखने की आधिकारिक जिम्मेदारी है। मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ उतरने की तैयारियों के बीच चिदंबरम का मौन पार्टी को साल रहा है।
दिल्ली चुनाव से दूरी
कांग्रेस के नेता दिल्ली विधान सभा चुनाव से भी कन्नी काटना चाह रहे हैं। इनमें से कपिल सिब्बल, संदीप दीक्षित, रमेश कुमार जैसे नेताओं ने दिल्ली चुनाव में जाने के पार्टी आग्रह को ठुकरा दिया है। जबकि, अजय माकन, कृष्णा तीरथ, जयप्रकाश अग्रवाल, जैसे नेता भविष्य की बेहतर गारंटी के साथ मोर्चे पर जाने को रजामंद हुए हैं। जबकि, प्रदेश अध्यक्ष पार्टी पदाधिकारियों के चुनाव न लड़ने के पुराने नियम के तहत बचने की फिराक में हैं।