राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैश्विक बाज़ार में तेल की गिरती कीमतें शायद कल पेट्रोल और डीजल को और सस्ता कर दें पर इसका लाभ आम जनता को कैसे मिले इस पर केंद्र और खासकर मध्यप्रदेश कि सरकार नहीं सोच रही है| इन्हें अपने खजानों कि चिंता है| मध्यप्रदेश कि हालत तो यह है सीमावर्ती जिलों से लोग पेट्रोल और डीजल लेने राजस्थान, गुजरात और महारष्ट्र जा रहे है| मध्यप्रदेश सरकार तो सबसे ज्यादा कर वसूल रही है|
ग्लोबल मार्केट में तेल की कीमत के आज 45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचने के बाद भी, यह कह पाना मुश्किल है कि यह कितना और नीचे जाएगी। भले ही तेल की गिरती कीमतें भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए अच्छा संकेत हो, लेकिन गिरावट के साथ कई नकारत्मक बातें भी जुड़ी हैं। पिछले साल जून से कच्चे तेल की कीमतों में करीब 60 फीसदी की गिरावट आई है और यह 111 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 45 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई है। इसका कारण ओपेक के सदस्य देश सऊदी अरब द्वारा मार्केट में अमेरिका की शेल इंडस्ट्री और रूस जैसे नए खिलाड़ियों के मुकाबले अपना शेयर बरकरार रखने के लिए सप्लाई बढ़ाया जाना रहा है।
तेल की कीमत में गिरावट भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तेजी से गिरावट के रूप में सामने आई है। अगस्त से पेट्रोल की कीमतों में 12.27 रुपये/लीटर और डीजल की कीमतों में अक्टूबर से 8.46 रुपये/लीटर की गिरावट आ चुकी है। साथ ही 15 जनवरी को इनकी कीमतों में एक बार फिर से कमी की संभावना है। तेल की कीमतों से महंगाई और तेल आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी, जो पिछले साल 160 अरब डॉलर था और इस साल इसके 100 110 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है। इससे केरोसिन और कुकिंग गैस की सब्सिडी में भी कमी आएगी। इन सबके दूरगामी प्रभाव से राजकोषीय घाटा कम होगा और इससे टैक्स को बढ़ाने की जरूरत भी कम होगी। अभी तो इसी घाटे के नाम पर जनता कि जेब खाली हो रही है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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