उपदेश अवस्थी/भोपाल। खाने-पीने की चीजों में तो मिलावट आज की तारीख में आम बात हैं लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि जो खून इंसानों की रगों में दौड़ता है, उसमें भी मिलावट हो सकती है। यकीन करना मुश्किल है, लेकिन ऐसा हो रहा था। दौलत के लालच में मिलावटी खून का धंधा जोरशोर से चल रहा था।
ये केवल प्राइवेट ब्लड बैंकों में नहीं बल्कि सरकारी ब्लड बैंकों में भी चल रहा है। यह घिनौना धंधा पूरे देश में फैल गया है और मध्यप्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। ब्लड बैंक 400 रुपए प्रति यूनिट की दर से खून की थोक खरीदी कर रहे हैं। खून को खरीदते समय ब्लड बैंक में यह भी जांच नहीं की जाती कि खून बेचने आया व्यक्ति खून देने के योग्य भी है या नहीं, कहीं उसके खून में एड्स या इसके जैसे दूसरे वायरस तो नहीं हैं।
खून को खरीदने के लिए ब्लड बैंक में ‘स्लाइन वॉटर’ मिलाया जाता है, इससे 1 यूनिट खून 3 यूनिट हो जाता है और ग्रामीण इलाकों तक में 800 रुपए प्रतियूनिट की दर से आसानी से बचे दिया जाता है। खून की कमी होने की स्थिति में या मरीज की गरज को देखते हुए यह 5000 रुपए प्रति यूनिट तक बेचा जाता है। मरीज की जान बचाने के लिए परिजन मंहगे दामों पर भी खून खरीदते हैं, बावजूद इसके उन्हें मिलावटी खून सप्लाई कर दिया जाता है।
डॉक्टरों की मिलीभगत
डॉक्टरों को तो इन दिनों शैतान का दूसरा रूप कहा जाना ही ठीक होगा। हर मामले में इनका कमीशन तय होता है। मरीज बस एक बार डॉक्टर के चंगुल में फंस भर जाए, फिर वो दुनिया भर के किसी भी अस्पताल में भर्ती हो जाए, किसी भी मेडिकल स्टोर से दवा ख्ररीदे, किसी भी पैथालॉजी से जांच करवाए या किसी भी ब्लड बैंक से खून खरीदे, डॉक्टर को उसका कमीशन ईमानदारी के साथ पहुंचा दिया जाता है। अब जब कमीशन आना ही है तो डॉक्टर कैसे यह बता सकते हैं कि मरीज को खून चढ़ाया जा रहा है वो मिलावटी है।
समस्या क्या है
इस कारोबार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस कारोबार का पता तो लगाया जा सकता है परंतु इसको बंद नहीं करवाया जा सकता। हर मामला विशेषज्ञों की जांच पर आधारित होता है और एक डॉक्टर कभी भी दूसरे डॉक्टर की दुकान बंद नहीं करवाता। जांच रिपोर्ट हमेशा शिकायतकर्ता के खिलाफ ही जाती है और इस पूरी दुनिया में डॉक्टर के अलावा ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो डॉक्टर या मेडिकल इंडस्ट्री में चल रहे काले कारोबार को कोर्ट में प्रमाणित कर सके। इसलिए इस तरह के कारोबार खुलेआम चल रहे हैं, सबकी जानकारी में भी हैं परंतु फिर भी कोई कुछ नहीं कर पाता।
समाधान क्या है
इसका सिर्फ एक ही समाधान है। मेडिकल लाइन में आज भी कई ईमानदार डॉक्टर मौजूद हैं। वो काले कारोबारी डॉक्टरों के खिलाफ कभी आवाज तो नहीं उठाते परंतु अपना ईमान भी नहीं बेचते। ऐसे डॉक्टरों की खोज करें एवं सोशल मीडिया या अन्य माध्यम से उनके बारे में सबको बताएं, ताकि मरीज अच्छे डॉक्टरों के पास ही जाएं और कम से कम अच्छा इलाज तो प्राप्त कर सकें। याद रखें ऐसे डॉक्टरों के पास लक्झरी अस्पताल, या दूसरी सुविधाएं सामान्यत: नहीं होतीं परंतु मर्ज को पहचानने और मरीज को बचाने की क्षमता अद्भुत होती है।