नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मोदी सरकार को अध्यादेशों के जरिए योजनाओं को लागू करने को लेकर चेताया है। प्रणब मुखर्जी ने सरकार को इशारों-इशारों में नसीहत देते हुए कहा कि संविधान में अध्यादेश जारी करने को लेकर शक्तियां सीमित हैं। राष्ट्रपति ने इसके साथ ही संसद न चलने देने के लिए विपक्ष को फटकार लगाई। उन्होंने कहा, 'शोर-शराबा करने वाले कुछ लोगों को शांत बहुमत लोगों का मुंह बंद करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।'
राष्ट्रपति ने सोमवार को सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और रिसर्च इंस्टिट्यूट्स के स्टूडेंट्स और फैकल्टी को विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, 'संविधान में जरूरी कामों के निपटाने के लिए अध्यादेश जारी करने की शक्तियां सीमित हैं।' उन्होंने कहा, 'संविधान ने असाधारण परिस्थितियों में अध्यादेश जारी करने का प्रावधान किया है, लेकिन इसे सामान्य कानून बनाने का माध्यम नहीं बनाया जा सकता है और न बनाया जाना चाहिए।'
बता दें कि प्रणब मुखर्जी इससे पहले भी अध्यादेश पर मोदी सरकार से सवाल कर चुके हैं। राष्ट्रपति ने जमीन अधिग्रहण संबंधित अध्यादेश को मंजूरी देने से पहले केंद्रीय कैबिनेट से पूछा था कि आखिर इस मामले में इतनी जल्दी क्यों है? राष्ट्रपति ने सरकार से स्पष्टीकरण लेने के बाद ही अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए थे।
राष्ट्रपति ने इसके अलावा संसद न चलने देने के लिए विपक्ष की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि बार-बार सदन की कार्यवाही रोकने से नीति बनाने से काम ठप होता है, साथ ही समय और धन की बर्बादी होती है। उन्होंने सत्तारुढ़ एवं विपक्षी दलों से कहा कि आए दिन अध्यादेश जारी करने से बचने के लिए वे आपस में मिल बैठकर कोई व्यवहारिक समाधान निकालें।
उन्होंने कहा, 'विपक्ष के पास अगर संख्याबल है तो वह विरोध, पर्दाफाश और संभवत: अपदस्थ भी कर सकता है, लेकिन हमेशा यह ध्यान रखें कि यह सदन के निर्वाचित सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है, चाहे वे लोकसभा के लिए सीधे निर्वाचित हुए हों या राज्यों के जरिए राज्यसभा के लिए।'
कार्यपालिका द्वारा अक्सर अध्यादेश जारी करने के संबंध में उनकी राय पूछे जाने पर मुखर्जी ने कहा, 'मैंने राजनीतिक प्रतिष्ठान से कहा है कि वे आपस में बातचीत करें और अपने मतभेदों का समाधान करें।'
गौरतलब है कि पिछले सात महीने में केंद्र सरकार योजनाओं को लागू करने के लिए 10 बार अध्यादेश का सहारा ले चुकी है। राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण बिलों के अटकने से सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है।