भोपाल। ग्वालियर राजघराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के गृहनक्षत्र इन दिनों ठीक नहीं चल रहे हैं। पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ना केवल उनके लोकसभा क्षेत्र से तीन कॉलेज शिफ्ट कर दिए बल्कि उनसे मिलने से भी इंकार कर दिया। सिंधिया की शान में लगा यह बट्टा लोग भुला पाते कि उनकी अपनी कांग्रेस में विधानसभा चुनाव हार चुके कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी ने उन्हें मात दे दी। पचौरी ने सिंधिया की पूरे 1 महीने की मेहनत पर पानी फैर दिया।
टीम राहुल गांधी के प्रमुख सदस्य एवं सिंधिया राजघराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान जिस तेजी से बढ़ा था, उनके विरोधियों ने उसी तेजी के साथ जनता के सामने उन्हें क्षेत्रीय और बोना नेता साबित कर दिया। हालांकि यह राजनीति है और पांसा कभी भी पलट सकता है परंतु सिंधिया राजघराने के जनप्रतिनिधियों की ऐसी स्थिति बहुत कम ही देखने को मिली है।
सिंधिया राजपरिवार की ओर से राजनीति में कदम रखने वालीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तो राजपरिवार से सन्यास लेने के बाद जैसे जनसंघ और भाजपा पर राज किया था। उनके छोटे से आग्रह को भी अटल/आडवाणी तक गंभीरता से लिया करते थे। हालांकि सिंधिया विरोधी उस समय भी थे परंतु वो भी मर्यादाओं का ध्यान रखा करते थे।
सिंधिया राजपरिवार के दूसरे प्रमुख राजनीतिज्ञ माधवराव सिंधिया ने भी एक गरिमापूर्ण राजनैतिक जीवन बिताया। कई सारे विवाद उनके जीवन से जुड़े रहे, दिग्विजय सिंह समेत कई धुरंधर नेता ना केवल उनका विरोध करते रहे बल्कि उनके विरोध में आने वाले नेताओं को पोषित भी करते रहे, बावजूद इसके माधवराव सिंधिया के सम्मान में कभी कोई कमी नहीं हुई। उनके घुर विरोधी भी जब उनके सामने पड़ते तो मुजरा करते हुए ही दिखाई देते थे।
अब ज्योतिरादित्य सिंधिया इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। निश्चित रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता से एक कदम आगे बढ़ते हुए खुद को जनप्रिय नेता प्रमाणित किया है। जहां माधवराव सिंधिया के नाम के साथ ग्लेमर चला करता था वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया 'महाराज' के कहीं ज्यादा जनप्रिय नेता बने। पूरे मध्यप्रदेश में उनके प्रशंसकों की कमी नहीं है, परंतु विधानसभा चुनावों में उनके दमदार प्रदर्शन के बाद उनके विरोधियों ने उन्हें बोना साबित करने का जो चक्रव्यूह रचाया है, सिंधिया उसमें पूरी तरह से फंस गए लगते हैं।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनकी लोकसभा में स्वीकृत हुए कॉलेजों को केवल इसलिए शिफ्ट किया ताकि उनकी लोकसभा में मतदाताओं को यह संदेश दिया जा सके कि सिंधिया अब शक्तिशाली नहीं रहे। वो एक अदद कॉलेज नहीं बचा सकते, विकास कैसे कर पाएंगे। लोगों ने उन्हें जिताकर गलती की है और इसका भुगतान 5 साल तक करते रहना होगा।
सिंधिया इस हमले का कोई जवाब नहीं दे पाए। कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल सीएम से मिलने गया था, लौटकर इस मंडल ने बताया कि सीएम ने आश्वासन दिया है कि कॉलेज शिफ्ट नहीं होंगे परंतु कुछ दिनों बाद जब ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम से मिलने आए तो दिल्ली से भोपाल तक आ जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने बीमारी का बहाना बनाकर उसके साथ होने वाली मुलाकात रद्द कर दी।
सिंधिया के माथे पर लगा यह दाग अभी फीका भी नहीं पड़ा था कि उनकी अपनी कांग्रेस के नेता सुरेश पचौरी ने उन्हें पटखनी दे डाली। सिंधिया पूरे 1 महीने से अपने समर्थक संजय श्रीवास्तव को भोपाल महापौर पद का प्रत्याशी बनाने के लिए होमवर्क कर रहे थे परंतु एन मौके पर पचौरी ने टांग अड़ा दी और उसी हाईकमान से कैलाश मिश्रा के लिए मेंडेड ले आए, जिसमें सिंधिया का दबदबा माना जाता था।