बड़ी मुश्किल है देश के 82 बड़े उद्ध्योग घरानों द्वरा न तो बैंक का ब्याज ही चुकाया जा रहा न ही मूलधन| 83 अन्य बड़े उद्ध्योग ब्याज की छूट या कर्ज वापिसी कि अवधि बढ़ाना चाहते हैं| बैंकर यह मान बैठे है कि इनमे से एक तिहाई से अधिक ऋण वापिस नहीं आएगा| इन सब ने सार्वजनिक बैंकों से ऋण लिया है|
वर्तमान अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ रहा है सो पड़ रहा है, इससे सार्वजनिक बैंक भी लहूलुहान हो चुके हैं। इन बैंकों में आम आदमी की खून-पसीने की कमाई का पैसा जमा है। अगर उद्योगों के कर्ज बैंक राइट आॅफ या रिस्ट्रक्चर किए जाते हैं, तो उसकी कीमत अंतत: जनता को ही चुकानी पड़ती है। हाल ही में सरकार ने खर्च कटौती के नाम पर स्वास्थ्य बजट में बीस हजार करोड़ रुपए कम कर दिए। हमारे देश में स्वास्थ्य बजट पहले ही काफी कम है। इस कटौती की मार भी गरीब आदमी पर पड़ेगी। दूसरी ओर बड़े-बड़े उद्योग हैं, जिन्हें कर्ज न चुकाने पर भी सरकार और बैंक दंडित करने से हिचकते हैं।
‘मेक इन इंडिया’ नारे को साकार करने के लिए मोदी सरकार ने सार्वजनिक बैंकों की नकेल कसनी शुरू कर दी है। पुणे में इन बैंकों के करीब सौ आला अधिकारियों के दो दिवसीय ज्ञान संगम सम्मेलन के बाद जो सिफारिशें छन कर आर्इं, केंद्र सरकार ने उन पर शीघ्र निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। इस सम्मेलन को प्रधानमंत्री ने भी संबोधित किया और बैंक अधिकारियों को भरोसा दिलाया कि सरकार उनके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करेगी। उन्हें पेशेवर तरीके से काम करने की पूरी छूट मिलेगी।
बैंकों के सम्मेलन के बाद जो सिफारिशें सरकार को सौंपी गर्इं, उनमें से अधिकतर पुरानी हैं। सबको पता है कि कर्ज न लौटाने वाले उद्योग कानूनी दांव-पेच का सहारा लेकर अक्सर बच जाते हैं। वे अदालतों से स्थगनादेश ले आते हैं। उन्हें विलफुल डिफाल्टर (जानबूझ कर कर्ज न लौटना) घोषित करने में बैंकों को पसीना आ जाता है। होना यह चाहिए है कि जानबूझ कर कर्ज न लौटाने वाले उद्योगों के खिलाफ फौजदारी का मामला दर्ज किया जाए और दोषी कंपनियों के मैनेजमेंट में बदलाव की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए, ताकि प्रबंधन अपने हाथ में लेकर बैंक अपना कर्ज वसूल कर सकें। साथ ही दोषी कंपनियों की संपत्ति बेचने की प्रक्रिया आसान बनाई जाए। केंद्रीय सतर्कता आयोग के निर्देश के अनुसार फिलहाल ऐसी संपत्ति खुली नीलामी के जरिए बेची जा सकती है। बैंक अपने बैड लोन सीधे बेचने की अनुमति दी चाहती हैं|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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