कुतर्क दे रहा है नगर निगम, भास्कर ने खोला मोर्चा

भोपाल। बीआरटीएस के डेडिकेटेड कॉरिडोर में स्कूल-कॉलेज बसों को चलाने के मामले में नगरनिगम कुतर्कों पर उतर आया है। ये शुद्ध जनहित का मामला है लेनिक नगर निगम को शायद जनहित की परवाह नहीं, इधर मध्यप्रदेश के सबसे बड़े हिन्दी अखबार दैनिक भास्कर ने इस मामले में मोर्चा खोल दिया है। वो लगातार इस अभियान के समर्थन में काम कर रहा है।

ये रहे नगर निगम के कुतर्क
स्कूल बस के कारण बीआरटीएस में लगने वाला ऑटोमेटिक फेयर कलेक्शन नहीं चल पाएगा।
लो-फ्लोर बस ड्राइवरों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही बसों की लाइव ट्रैकिंग की जाती है।
बीआरटीएस में ट्रैफिक सिग्नल लो-फ्लोर बस और पैदल यात्री की प्राथमिकता के आधार पर लगाए गए हैं।
बीआरटीएस का मूल उद्देश्य है बसें तेजी से चलें। यदि अन्य बसें कॉरिडोर में आईं तो यह उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
कॉरिडोर में स्कूल बसों के प्रवेश से दोनों ओर ट्रैफिक का दबाव बढ़ेगा अौर दुर्घटनाओं में इजाफा हो सकता है।
स्कूल-कॉलेज बसों को कॉरिडोर में बच्चों को बैठाने या उतारने के लिए कहीं भी रोक दिया जाएगा।

... और रहे एक्सपर्ट्स के जवाब
बस स्टॉप ही पूरे नहीं बने और न अभी बन पाएंगे, क्योंकि संबंधित कंपनी की बैंक गारंटी जब्त हो गई है।
यह प्रशिक्षण स्कूल-कॉलेज बसों के ड्राइवरों को भी दे सकते हैं। स्कूल बसों में भी लाइव ट्रैकिंग जरूरी है।
पूरे सिग्नल नहीं लग पाए। कॉरिडोर के सभी सिग्नल चालू हुए तो मिक्स्ड लेन में ट्रैफिक प्रॉब्लम बढ़ जाएगी।
बीआरटीएस रूट पर सिर्फ 25 हजार की यात्री संख्या है, जबकि इसकी कुल क्षमता 70 हजार यात्रियों की है।
स्कूल बस कॉरिडोर में आएंगी तो मिक्स्ड लेन का ट्रैफिक कम होगा। इससे दुर्घटनाएं भी कम होंगी।
बस ड्राइवरों को ट्रेनिंग दे सकते हैं और स्कूल बसों के लिए स्टॉपेज निर्धारित किए जा सकते हैं।

नेता नगरी की प्रतिक्रियाएं
भोपाल में इन दिनों नगरनिगम के चुनाव चल रहे हैं। भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों के महापौर पद के प्रत्याशियों का कहना है कि इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। आरटीओ का प्रस्ताव सही है और नगर निगम को इसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।

चुप क्यों है मीडिया हाउस
इस मामले में भोपाल में सक्रिय तमाम मीडिया हाउसों की चुप्पी अजीब संकेत दे रही है। मामला जनहित से जुड़ा हुआ है परंतु इसे दैनिक भास्कर ने लिफ्ट कराया ​इसलिए अब दूसरे तमाम मीडिया हाउस इस मामले में चुप हो गए हैं, जबकि सामान्यत: जनहित के मामलों में मीडिया हाउसों के बीच ऐसा देखने को नहीं मिलता। देश के दूसरे शहरों में जनहित से जुड़े मुद्दों पर सभी मीडिया संस्थान एकराय हो जाते हैं एवं अपने अपने तरीके से विषय का समर्थन करते हैं। जनहित से जुड़े मुद्दों का समर्थन किया ही जाना चाहिए, फिर चाहे उसे लिफ्ट कराने वाला मीडिया संस्थान कोई भी क्यों ना हो। इस मामले में व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को केन्द्र बनाना कम से कम मीडिया घरानों के लिए तो उचित नहीं है। 

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