नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान में राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अनुसूचित जाति–अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ दे सकते हैं लेकिन यह उनकी बाध्यता नहीं है और अदालतें सरकारों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए निर्देश नहीं दे सकती हैं। जस्टिस जे. चेलामेस्वर और एके सिकरी की सदस्यता वाली खंडपीठ ने कहा कि हालांकि किसी एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारी को उसके हक का प्रमोशन नहीं मिलता है तो वह कोर्ट से हर्जाना दिलाने की मांग कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि किसी भी श्रेणी या श्रेणियों के पद के लिए पदोन्नति का सवाल है तो इस पर आरक्षण के लिए प्रावधान अजा–अजजा के कर्मचारी के पक्ष में किया जा सकता है यदि राज्य सरकार को लगता है कि उस वर्ग के अधिक कर्मचारी राज्य सरकार की उस सेवा में नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि प्रमोशन संबंधी प्रावधान करने का अधिकार केवल राज्य के पास ही है. साथ ही अदालतें इस बारे में राज्य सरकार को कोई आदेश नहीं दे सकती हैं. इस बारे में राज्य सरकार को ही स्वीकारात्मक कार्रवाई करना होगी.
इस बारे मे कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 16 की धारा 4 और 4–ए का जिक्र किया, जो प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित है।
इस मामले में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने एससी एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने से मना कर दिया तो इसके खिलाफ बैंक के अजा–अजजा कर्मचारी कल्याण संघ और अन्य ने चुनौती दी.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कहना था कि श्रेणी एक के कर्मचारी, जिनका मूल वेतन 5700 रपए से अधिक है, को प्रमोशन में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है.