गुमनामी के अंधेरे में खो गया गैरतगंज का सक्रांति मेला

पीबी नायक/गैरतगंज। नगर में हर वर्ष सक्रांति के महापर्व पर लगने वाले सक्रांति मेले की महज यादें ही शेष है। प्रशासन और जनप्रतिधियों की उपेक्षा के चलते मेला बंद होकर गुमनामी के अंधेरे में खो गया है। मेले की भव्य शुरूआत सन् 1948 में नबाबी शासन के समय हुई थी। विभिन्न प्रमुख त्यौहारों पर आम लोगो खासतौर पर ग्रामीणों के लिए ग्रामीणों के लिए मनोरंजन, सैर सपाटें एवं खरीद फरोख्त के लिए बडा महत्व होता है। वर्तमान में तो मेले ग्रामीण के अलावा शहरी परम्परा के भी अंग बन गए है ऐसे में वर्षो तक लगा गैरतगंज का सक्रांति मेला उपेक्षा के चलते अब मात्र स्मृतियों में ही बचा है।

प्राचीन महत्व है सक्रांति मेले का
गैरतगंज के टेकापार क्षेत्र स्थित चिंताहरण महादेव मैदान में लगने वाले सक्रांति मेले का प्राचीन महत्व है। मेले की शुरूआत सन् 1948 में हुई थी। तथा नगरिकों की रूचि को ध्यान में रखते हुए भोपाल स्टेट के नबाब हमीदउल्ला ने मंत्री बाबू कामता प्रसाद की अनुशंसा पर प्रतिवर्ष आर्थिक सहायता आयोजन समिति को दी। मेला परिसर स्थित चिंताहरण महादेव मंदिर एवं तपो भूमि रडिया मंदिर पर महायज्ञ के आयोजन मेले के समय ही होत है। जिसमें क्षेत्रभर की आस्था रहती थी।

इनका रहा मेले में योगदान
क्षेत्र के वरिष्ठ समाजसेवी स्वतंत्रता सैनानी स्व.हरगोविन्द नायक, तत्काली सरपंच जाकिर अली, स्व. शिवप्रसाद नायक, गबडू सिंह ठाकुर, महताब सिंह ठाकुर, पत्रकार स्व. छगनलाल नायक, श्यामलाल सोनी, पन्नालाल शर्मा, लालसिंह प्रजापति, नर्मदा प्रसाद तिवारी, बाबूलाल बडकुल, प्रेमगिरी गोस्वामी जैसे गैरतगंज के समाजसेवी रहवासियों ने मेले की स्थापना एवं उसके संचालन में अपना अथक योगदान दिया था। इनमें से अनेक लोग तो अब इस संसार में ही नही है।

ग्राम पंचायत ने बंद कराया मेला
47 साल तक सफलतापूर्वक चले सक्रांति मेले को सन् 1995 में तत्कालीन ग्राम पंचायत ने बिना किसी कारण के बंद करा दिया गया। जिससे क्षेत्र के लोगो को काफी निराषा हुई। मेले को बंद कराने में जहां प्रषासनिक एवं जनप्रनिधियों की उपेक्षा का योगदान रहा, तो वहीं जन जागरूकता के अभाव ने भी उसने अपनी भूमिका निभाई।

यह रहता था आकर्षण
उस समय लगने वाले सक्रांति मेले में रामलीला,झूले, नाटक कंपनी, सिनेमा घर, प्रदर्षनी सहित अन्य मनोरंजन के साधन आकर्षण का केन्द्र रहते थे। साथ ही विभिन्न सामग्रियों की लगने वाली दुकानें भी लोगो की जरूरते पूरा किया करती थी। मेले का सैर सपाटा लोगो को आंनदित एवं रोमांचित करता था।

सिमट गई मेला भूमि
सक्रांति मेला जहां लगता था वह तकरीबन 5 एकड भूमि थी परन्तु अब वह भी सिमट चुकी है। अब लगभग 1 एकड का भू भाग शेष बचा है उसका भी अस्तित्व खतरे में है। मौके पर कृषि उपज मंडी का कार्यालय, सडक मार्ग एवं रहवासियों के मकानों के अलावा चिंताहरण महादेव का मंदिर भर दिखाई दे रहा है।

नही हो रहे प्रयास
19 साल से बंद पडे सक्रांति मेले को शुरू कराने की ओर प्रषासन एवं जनप्रतिनिधियों का कोई ध्यान नही है जिससे प्राचीन महत्व के इस आयोजन की पुनः शुरूआत नही हो पा रही है। आधुनिक युग में मेले के बढते महत्व से भी लोग अंजान बने हुए है।यदि मेले की पुनः शुरूआत करने की योजना पर कार्य किया जाए तो जहां प्राचीन परम्परा की रक्षा होीग वही नए समय के अनुसार लोगो को मनोरंजन का कार्यक्रम भी मिलेगा। साथ ही धार्मिक परम्परा को पुनः स्थापित किया जा सकेगा।

कराएंगे शुरूआत
गैरतगंज में मेला बंद होने संबंधी जानकारी है। इस प्राचीन मेले को पुनः शुरू कराने का प्रयास किया जाएगा।
उत्तमचंद जैन
नपा अध्यक्ष गैरतगंज


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