उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। कार्पोरेट और नेताओं का अपवित्र रिश्ता और बेगानी बारात में नाचती मीडिया किस विषय को महत्वपूर्ण बना दे और किसे महत्वहीन कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता। जनता भी आंख बंद कर वही जपा करती है जो उसके बीच योजनाबद्ध तरीके से प्लांट किया जाता है।
यूं तो भारत के पीएम का पहनावा कभी चर्चा का विषय नहीं हो सकता। परंतु 10 लाख का सूट मोदी ने पहना तो चर्चा स्वभाविक थी। यहां विषय यह नहीं था कि सूट सरकार के खजाने से खरीदा या किसी बनिए ने गिफ्ट किया।
विषय तो यह था कि देश के हित में अपनी पत्नि तक का मोह त्याग देने वाला संघ का सन्यासी प्रचारक इतना रंगीन मिजाज कैसे हो गया।
सूट पर proud to be an indian लिखा होता तो भी मान लेते कि देश पर गर्व किया है लेकिन वहां तो narendra damodardas modi लिखा था। कष्ट यह था कि जिसे देशभक्त माना वो Self Lover कैसे हो गया।
चलो जो हुआ सो हुआ, लेकिन इस सूट की नीलामी ने तो हदें पार कर दीं। सुना है 4 करोड़ से ज्यादा में नीलाम हुआ।
40 करोड़ में भी होता तो कोई कष्ट नहीं था, लेकिन कष्ट इस बात का है कि जो सरकार शहीदों की वर्दी कुत्तों को कुतरने के लिए फैंक दिया करती है वही सरकार एक सूट की नीलामी की ब्रांडिंग इस तरह कर रही थी मानो यह मोदी की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
देश में प्रमुख माने जाने वाले हर मीडिया संस्था को मोदी के सूट की चिंता सता रही थी। बोली कितनी बढ़ रही है, ताजा अपडेट दिए जा रहे थे, मानो शेयर बाजार बढ़ रहा हो। हर घंटे मंहगाई घट रही हो। मानो देश के लिए गर्व की बात हो गई हो।
चलते चलते याद दिला दूं, अभी हाल ही में 4 दिसम्बर को रायपुर में शहीदों की वर्दियां कचरे के ढेर पर मिलीं थीं, कुत्ते कुतर रहे थे उन्हें। आज दिनांक तक उन्हे मुकम्मल स्थान नहीं मिला।