भोपाल। स्वाइन फ्लू के नाम पर करोड़ों कमाने की योजना ने अंतत: आकार ले ही लिया। सरकारी मदद के चलते मेडिकल माफिया ने वो रास्ता निकाल ही लिया जिससे मरीजों को जबरन खींचकर प्राइवेट अस्पतालों और मंहगी दवाओं तक लाया जा सके।
शासन ने मेडिकल संचालकों को निर्देशित किया है कि बिना डॉक्टर की पर्ची के लोगों को सर्दी खांसी की दवाएं भी ना दें। यह आदेश तत्काल प्रभाव से मप्र की 22 हजार मेडिकल स्टोर्स पर एक साथ लागू कर दिया गया है। इसके चलते अब मजबूरी हो गई है कि जरा सा जुकाम होने पर भी मरीज को किसी ना किसी डॉक्टर के पास जाना ही होगा।
यहां याद दिला दें कि मप्र के तमाम बड़े प्राइवेट अस्पतालों ने प्रदेश भर में फैले हुए सरकारी और प्राइवेट डॉक्टरों से गठबंधन कर रखा है। यदि वो मरीज रैफर करते हैं तो इसके एवज में उन्हें मोटा कमीशन दिया जाता है। हालांकि पूरे 100 प्रतिशत डॉक्टर इस नेटवर्क में शामिल नहीं हैं परंतु दुखद है कि ज्यादा संख्या ऐसे ही डॉक्टरों की है।
अब जैसे ही कोई जुकाम पीड़ित किसी छोटे डॉक्टर के पास पर्ची लिखाने भी जाएगा तो स्वाईन फ्लू के नाम पर उसे डराकर जांच और मंहगी दवाएं दी जा सकेंगी। साथ ही बड़े अस्पतालों तक रैफर किया जा सकेगा।
- होना क्या चाहिए था
- सरकार को बंदोबस्त करना चाहिए थे कि वो सर्दी खांसी के मरीजों की मु्फ्त जांच करे।
- अस्पतालों में ओपीडी का समय बढ़ा दिया जाना चाहिए था।
- सरकारी डॉक्टरों को आदेशित किया जाना चाहिए था कि वो घर पर भी नि:शुल्क इलाज करें।
- प्राइवेट अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज के आदेश दिए जा सकते थे।
- अभियान घोषित कर गांव गांव स्वाइन फ्लू का काढ़ा पिलाया जा सकता था।
- समाजसेवी संस्थाओं से मदद मांग शिविर लगाए जा सकते थे।
परंतु ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि यदि ऐसा किया जाता तो केवल मरीजों की जांच और इलाज होता, मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंचाने का लक्ष्य कैसे पूरा होता।