राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह तो जग जाहिर है कि मोदी सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र को और गति देने का उत्साह तो दिखाया है और मेक इन इंडिया नाम से नई विनिर्माण नीति घोषित की है, पर कृषि क्षेत्र के लिए अभी तक उसका कोई महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम सामने नहीं आया है। नीति आयोग की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने जन धन योजना, स्वच्छ भारत अभियान और रसोई गैस सबसिडी को नकदी रूप देने जैसे कार्यक्रमों की तो चर्चा की, पर कृषि क्षेत्र के लिए अपनी सरकार की कोई खास पहल वे नहीं गिना सके।
भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में अल्प उत्पादकता, यानी प्रति एकड़ पैदावार अपेक्षित या तुलनात्मक रूप से कम होना दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रतिकूल स्थिति है। अगर लागत भी ऊंची हो, तो कम उत्पादकता दोहरी समस्या का रूप ले लेती है। उत्पादकों के रूप में जहां इसका नुकसान किसानों को भुगतना पड़ता है|
वस्तुत: खाद्य सुरक्षा के लिहाज से यह पूरे देश के लिए चिंता का विषय है, या होना चाहिए। हमारे कृषि क्षेत्र में अल्प उत्पादकता के अनेक कारण रहे हैं। तमाम योजनाओं के बावजूद करीब एक तिहाई कृषिभूमि ही सिंचाई-सुविधा के दायरे में आ सकी है। ऐसे में बारिश की कमी जैसे मौसमी कारक और भी मारक हो जाते हैं। कृषि अनुसंधान पर कम ध्यान और नई तकनीक और नई जानकारी तक किसानों की कम पहुंच भी अपर्याप्त उत्पादकता की वजह हो सकते हैं।
अजीब सी बात है कि भारत में उत्पादकता में कमी भी छोटी जोत से भी ताल्लुक रखती है, और यह तर्क देकर वे कृषिभूमि पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर लोगों की संख्या घटाने की वकालत करते रहे हैं। उन्होंने यह कभी नहीं पूछा कि जो लोग शहर में रहते हैं या जिनकी आजीविका के स्रोत दूसरे हैं, वे कृषिभूमि के मालिक न हों। बहरहाल, सबसे ज्यादा गौर करने की बात यह है कि कृषि उत्पादकता घटने का सबसे नया और निरंतर व्यापक होता कारण पर्यावरण-विनाश की प्रक्रिया से जुड़ा है।
भूजल का भंडार छीजता जा रहा है, लिहाजा सिंचाई के स्रोत के रूप में भी उसकी क्षमता दिनोंदिन घटती जा रही है। दूसरे, रासायनिक खादों और कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल के चलते जमीन की उर्वरा-शक्ति घटती गई है। आज मिट््टी की सेहत सुधारना और भूजल का संरक्षण कृषि उत्पादकता का सबसे बड़ा तकाजा है। इसे पूरा किए बिना न तो पैदावार की समस्या सुलझाई जा सकेगी न खेती टिकाऊ हो सकेगी। अगर अभी नहीं सोचा तो देर हो जाएगी|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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