राकेश दुबे@प्रतिदिन। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि मौजूदा वैश्विक वातावरण एक दुर्लभ अवसर प्रदान कर रहा है, जब विश्व भारत को गले लगाने के लिए उत्सुक है और भारत विश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। उन्होंने पुरानी मानसिकता बदलने और दुनिया की नई जरूरतों के हिसाब से काम करने की बात भी की। क्या दुनिया भर के भारतीय दूतावासों और राजनयिक मिशनों में बैठे लोग प्रधानमंत्री की इस सलाह पर अमल करेंगे? कहना कठिन है|
बहुत कम दूतावासों के राजनयिक उस देश के लोगों को भारत के बारे में शिक्षित करते हैं, या अपने देश की अच्छी छवि पेश करने की कोशिश करते हैं। अक्सर बहुत कम राजदूत इस बात में दिलचस्पी लेते हैं कि उद्योगपतियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। दूतावास एक पर्यटन केंद्र के रूप में अपने देश की मार्केटिंग कर सकते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। राजनयिकों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं। जैसे उन्हें ऐसे कामों के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिलता, वगैरह। उनकी यह भी शिकायत रही है कि उनकी कोशिशों के बाद अगर निवेशक भारत आते भी हैं, तो वे यहां आकर हतोत्साहित हो जाते हैं। सरकारी लालफीताशाही के कारण उनका काम आगे बढ़ ही नहीं पाता है और योजनाओं के कार्यान्वयन में वर्षों लग जाते हैं। इतने समय में वे दुनिया के कई दूसरे देशों में निवेश करके अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। जाहिर है कि राजदूतों के रवैये को बदलने के साथ ही हमें अपने घर के हाल को भी काफी बदलना होगा।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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