कार्पोरेट के मोदी: ना हिन्दुओं के रहे ना अमेरिका के

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। पिछले 1 साल में मोदी को कई बार रंग बदलते देखा है। शुरू शुरू में जब सोशल मीडिया पर मोदी को हीरो बनाया जा रहा था तब वो हिन्दूवादी नेता हुआ करते थे, चुनाव लड़ते लड़ते गली गली विकास के गारंटर, जीतने के बाद भारत को भुला विदेशों पर फोकस करने वाले और पिछले दिनों ओमाबा के पक्के यार, लेकिन कार्पोरेट्स के हाथों निर्मित ये इस नए मोदी पर उनके ही अमेरिकी यार ओबामा ने हमला बोल दिया है।


भारत में रहते हुए भी उन्होंने धीरे से ईसाईयों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए मोदी प्रशासन पर उंगली उठा दी थी। वॉशिंगटन पहुंचकर तो उन्होंने सीने में सीधा तीर मार दिया। गांधी को मोदी ने कांग्रेस से छीना था, लेकिन अब ओबामा गांधी पर पेटेंट करा ले गए। कहते हैं कि भारत में फैल रही साम्प्रदायिकता यदि गांधी देखते तो बड़े दुखी होते।

इस बयान के साथ ही ओबामा दुनिया भर में ईसाईयों के लोकप्रिय नेता हो गए। चारों ओर उनकी तारीफ हो रहीं है और मोदी ईसाई विरोधी नेता के रूप में स्थापित होते जा रहे हैं। अमेरिका के एक अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी से जवाब मांगा है। ओबामा के बयान पर जवाब।

वही ओबामा, जिसे चंद रोज पहले मोदी ने अपना यार बताया था। कहते थे हम दोनों तो घंटों गप्पे लड़ाते हैं, मानो अमेरिका का राष्ट्रपति ना हुआ, मोदी का पड़ौसी हो गया। अब उसी पड़ौसी के वाइट हाउस ने इसे सही वक्त पर आया बयान बताया है। इसी बात को और तीखे तरीके से आगे बढ़ाते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक संपादकीय लिखा है, जिसका शीर्षक हैः मोदी की खतरनाक खामोशी।

न्यूयॉर्क टाइम्स पूछता है, 'भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिर कब बोलेंगे?'

संपादकीय कहता है, 'जिस इन्सान को देश के हर नागरिक के प्रतिनिधि के तौर पर, उनकी रक्षा करने के लिए चुना गया है, उसकी ओर से ईसाई धर्मस्थलों पर बढ़ते हमलों को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। न ही उन्होंने ईसाइयों और मुसलमानों को पैसे देकर या जबरन हिंदू बनाए जाने के मसल पर कुछ बोला है।'

कुल मिलाकर भारत में रह रहे ईसाईयों की जरा सी शिकायत पर अमेरिका ने मोदी पर सीधा हमला बोल दिया है, वो मोदी को कट्टरवादी बता रहे हैं और यहां भारत के कट्टरवादी मोदी को अवसरवादी।

कितना बेहतर होता, मोदी बार बार अपना चेहरा ना बदलते, जो इमेज लोकसभा चुनाव से पहले बनी थी, उसे ही बनी रहने देते, एक काले अमेरिकी के स्वागत में विदेशी सूट ना पहनते, तो शायद यह दिन ना देखना पड़ता। स्वाभिमान बरकरार रहता।

वहां अमेरिका जवाब मांग रहा है कि ईसाईयों की सुरक्षा पर चुप क्यों हो, यहां भारत जवाब मांग रहा है अयोध्या, कश्मीर और धर्मांतरण पर खुलकर क्यों नहीं आते। बेचारे मोदी, ना हिन्दुओं के रहे ना अमेरिका के।

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