कलेक्टर पर कुछ ज्यादा ही सख्त हो गया चुनाव आयोग, हटाने के आदेश

रायपुर। चुनाव आयोग की अनुमति के बिना मनरेगा का पुरस्कार लेने दिल्ली क्या चले गए, चुनाव आयोग दंतेवाड़ा कलेक्टर के पीछे ही पड़ गया। आयोग ने कलेक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुंशसा करते हुए उन्हें दंतेवाड़ा से हटाने की सफारिश कर डाली। आरोप लगाया है कि इस कलेक्टर के रहते दंतेवाड़ा में निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते।

इस पूरे मामले को लेकर अब आयोग और सरकार के बीच टकराव बढ़ने के आसार हैं। उल्लेखनीय है कि त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव का अंतिम चरण होना शेष है और पूरे परिणाम आने तक चुनाव की आचार संहिता लागू रहेगी।

दंतेवाड़ा के कलेक्टर केसी देव सेनापति पिछले दिनों दिल्ली में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित एक पुरस्कार समारोह में शामिल हुए थे। राज्य में पंचायतों के चुनाव के दौरान राज्य निर्वाचन आयोग की अनुमति लिए बिना दिल्ली जाने के मामले को आयोग ने गंभीरता से लिया था और उन्हें नोटिस दी थी।

नोटिस का दिया जवाब
दंतेवाड़ा कलेक्टर ने आयोग द्वारा दी गई नोटिस का लिखित में जवाब दिया है। आयोग ने जवाब का परीक्षण करने के बाद पाया कि जवाब संतोषजनक नहीं है। अब आयोग ने राज्य सरकार को पत्र जारी कर कलेक्टर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा कर दी है। साथ ही उन्हें दंतेवाड़ा से हटाने की बात भी यह कहते हुए लिखी गई है कि दंतेवाड़ा जिले के निर्वाचन अधिकारी रहते हुए चुनाव कार्य छोड़कर चले गए थे।

कलेक्टर ने नहीं ली थी आयोग से अनुमति
दंतेवाड़ा कलेक्टर ने राज्य निर्वाचन आयोग से दिल्ली जाने के लिए अनुमति नहीं ली थी लेकिन उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग को आवेदन देकर दिल्ली जाने संबंधी जानकारी देते हुए अनुमति मांगी थी। बताया गया है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने कलेक्टर के ऑनलाइन आवेदन पर सशर्त अनुमति दी थी कि उन्हें निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी लेकिन इससे पहले ही जब केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आयोग को पत्र लिखकर कलेक्टर के दिल्ली आने की अनुमति का पत्र भेजा था तो आयोग ने उस पर असहमति जता दी थी।

क्या होनी चाहिए थी कार्रवाई 
चूंकि कलेक्टर अपने निजी काम से दिल्ली नहीं गए थे एवं पुरस्कार वितरण समारोह किसी राजनैतिक दल का आयोजन नहीं था अत: कलेक्टर को इस गलती के लिए चेतावनी देकर क्षमा भी किया जा सकता था। कई मामलों में चुनाव आयोग ऐसा करता आया है परंतु विधानसभा चुनावों के बाद से लगातार देखा जा रहा है कि चुनाव आयोग के सक्षम अधिकारी डिक्टेटरशिप में लगे हुए हैं। उनका फोकस निष्पक्ष चुनाव कराना नहीं बल्कि लाइम लाइट में बने रहना ज्यादा हो गया है। 

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