रतीराम श्रीवास/टीकमगढ। यदि कोई कलेक्टर किसी भर्ती प्रक्रिया के नियमों को बदलते हुए नई प्रक्रिया निर्धारित करे और उसके लिए बेरोजगारों से शुल्क भी जमा करा लिया जाए फिर प्रक्रिया पूर्ण ना की जाए तो इसे आप क्या कहेंगे ? क्या यह कलेक्टरों के हाथों बेरोजगारों की ठगी का मामला नहीं कहा जाएगा।
यह मामला सात साल पुराना है जब टीकमगढ कलेक्टर विवेक पोरवाल थे उस समय ग्राम पंचायत सचिव की भर्ती प्रदेश सहित टीकमगढ जिले मे की जा रही थी वर्ष 2007 मे ग्राम पंचायत सचिव की भर्ती के आवेदन फार्म कलेक्टेट कार्यालय मे जमा किये गये थे आवेदन शुल्क सौ रूपया था। इस तरह लाखो की राशि जमा की गई जिसका कोई अता पता नही।
मिली जानकारी के अनुसार जिला मे पंचयातों मे रिक्त पद पंचयात सचिव के भरने के लिये वर्ष 2007 मे पंचायतों द्वारा ग्राम सभा की बैठक मे प्रस्ताव डालकर पंचायत सचिव के पद भरे जा रहे थे इस तरह सरपंचो ने अपने चाहेतो का फर्जी प्रस्ताव डालकर अनुमोदन के लिये संबंधित कार्यालय भेज दिये थे इस फर्जी प्रस्ताव की शिकायतें तत्कालीन कलेक्टर विवेक पोरवाल से की गयी थी। कलेक्टर पोरवाल ने शिकायतों को गम्भीरता से लेते हुये ग्राम सभा द्रारा नियुक्त पंचयात सचिव का पद निरस्त कर दिया था और एक आदेश जारी किया था की रिक्त पंचायतों मे सचिव पद हेतू आवेदन शुल्क 100 सौ रूपया के साथ आवेदन फार्म जिला मुख्यालय कार्यालय मे जमा किये जायेगे। प्राप्त आवेदनो की समय सीमा मे एक लिखित परीक्षा ली जायेगी परीक्षा के बाद मैरिट के आधार पर पंचयात सचिव का चयन किया जायेगा। उक्त पद की आज तक न तो कोई परीक्षा ली गई और नही कोई सूचना दी आवेदको को इस प्रकार बेचारे आवेदक आज भी इंतजार कर रहे हे उक्त परीक्षा का।
अब सबाल यह उठाया जा रहा है की प्राप्त आवेदन फार्मो की राशि कहां गई परीक्षा किन कारणो से नही ली गई जब परीक्षा का प्रावधान नही था तो शिक्षित वेरोजगारो का आर्थिक षोशण क्यो किया तमाम सबालो का जबाब चााहिये आवेदको को।