राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का एक जुमला इन दिनों उद्द्योग जगत में सर्वाधिक चचित है “ कारखाना लगाने के लिए जिस जमीन पर हाथ रखेंगे, वह आपकी हो जाएगी|” कोई और कहता तो शायद उसे अज्ञानी कहकर टाला जा सकता था| इन्हें नहीं, माफ़ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तो सदैव अपने को धरतीपुत्र कहने में गौरव का अनुभव करते आयें हैं|
वैसे इन दिनों धरतीपुत्रों कि दशा गंभीर है और यह छिपा तथ्य नहीं है कि आज के दौर में खेती से लोगों का मोहभंग होता जा रहा है। वजह साफ है। जो लोग खेती करके उससे लाभ कमाना चाहते हैं, उनके लिए अब यह लाभकारी सौदा नहीं रह गया। कठोर शारीरिक श्रम, महंगी खाद, बीज, बिजली, पानी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की तुलना में खाद्य उत्पाद की कम कीमत ने इसे अलाभकारी बना दिया है। इसलिए अगर मौका मिला तो लोग खेती से छुटकारा पाकर कुछ भी दूसरा कामकाज करने में भलाई देखते हैं।
कुछ लोग व्यावसायिक खेती करते हैं। लेकिन यह बड़े किसानों की बात है और वहां से भी आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं। फिर जमीन से आज बंधा कौन रहना चाहता है? बस जमीन का वाजिब दाम, बेहतर मुआवजा मिले, इसको लेकर मोलभाव होता रहता है। वह ठीक-ठाक मिला तो आज की तारीख में अधिकतर किसान जमीन बेच देने में ही लाभ देखते हैं। विश्व बैंक का आकलन है कि पूरे देश में स्वेच्छा से या अनिच्छा से इस वर्ष के अंत तक चालीस करोड़ भारतीय परिवार शहरों की तरफ पलायन करेंगे।
जहाँ तक मध्यप्रदेश का सवाल है यहाँ कि फसल देश के खाद्यान्न भंडारण का एक बड़ा हिस्सा होती है| कारखाने लगाना अपनी जगह ठीक हो सकते हैं, पर खेत उजाड़ कर किसान को बेबस कर कौड़ी के मौल जमीन देना समझदारी नहीं है| एक हाथ में कृषि कर्मण अवार्ड के साथ दूसरा हाथ किसान के कंधे पर हाथ रखकर, जमीन पर उगते सीमेंट कंक्रीट जंगल को रोकने की है| कारखाने डबल रोटी बना सकते हैं, रोटी पैदा नहीं कर सकते| मध्यप्रदेश को रोटी पैदा करने दें| खेती को लाभ का उद्योग बनाने के जतन करे| हल थामने वालों के हाथों सायकिल रिक्शा का हैंडिल बुरा लगता है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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