गंगेश द्विवेदी/रायपुर। बिलासपुर के सिम्स अस्पताल में एक एड्स पीड़ित मरीज की लाश 24 घंटे तक लावारिस पड़ी रही। अंतिम संस्कार के लिए उसे लेने कोई नहीं पहुंचा तो ऐसे में एक किन्नर रायपुर से बहन बनकर पहुंची और पूरे रीति रिवाज के साथ उसकी अंतिम यात्रा निकलवाई। स्थानीय लोगों की मदद से उसका अंतिम संस्कार करवाकर मानवता का उदाहरण पेश किया।
टिकरापारा, बिलासपुर निवासी संतोष यादव पिछले कई सालों से एड्स से पीड़ित था और पिछले कुछ महीने से बिलासपुर के सिम्स अस्पताल में भर्ती था। वह इंजेक्शन के जरिए नशीली दवा लेने का आदी था। दोस्तों के साथ वह नशे का इंजेक्शन शेयर करता था। इसी दौरान उसे एड्स हो गया। किन्नर अमृता सोनी से वह दो साल पहले एड्स कंट्रोल प्रोग्राम के दौरान संपर्क में आया था। किन्नर अमृता नेशनल एड्स कंट्रोल बोर्ड की ओर से यहां नोडल अफसर के रूप में वहां कार्यरत थी। लाइलाज बीमारी एड्स के साथ टीबी ने भी संतोष को घेर लिया था।
रीति-रिवाज के साथ कराया अंतिम संस्कार
रायपुर में कार्यरत अमृता को शुक्रवार को सिम्स से फोन आया तो वह सुबह रवाना हो गई। वहां पहुंचकर सिम्स के स्टाफ और कुछ अन्य मेडिकल कर्मचारियों के सहयोग से पूरे रीति-रिवाज के साथ उसका अंतिम संस्कार कराया।
कोई नहीं था संतोष का
संतोष के पिता का देहांत काफी साल पहले हो चुका है, उसकी मां की मौत साल भर पहले हुई। बाकी रिश्तेदारों ने उससे पूरी तरह मुंह मोड़ लिया था। ऐसे हालात में नशा करने वाले दोस्तों का ही सहारा था, लेकिन अंतिम यात्रा में वे भी साथ छोड़ गए।
समाज को जगाने की जरूरत
किन्नर अमृता का कहना है एड्स के मरीजों के साथ इलाज के दौरान और मौत हो जाने पर आज भी समाज में अछूतों की तरह का बर्ताव होता है। ऐसे मरीजों को लोग उपेक्षा की नजर से देखते हैं। यह भी भ्रांति है कि एड्स शारीरिक संपर्क से फैलता है। एड्स के फैलने के दूसरे कारण पीड़ित मरीज का रक्त लेने से, सीरिंज का उपयोग करने आदि होते हैं। लोगों के बीच इस बात की जागरूकता लाना जरूरी है कि एड्स के मरीज को छूने से यह बीमारी नहीं होती।
सिंबायोसिस से MBA
मूलतः महाराष्ट्र निवासी यह किन्नर सिंबायोसिस विश्वविद्यालय से एमबीए हैं। दिल्ली के जामिया मीलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन किया है। अमृता बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान उन्हें अपनी पहचान छुपानी पड़ी।
बहन हूं मैं सभी मरीजों की- अमृता
अमृता ने नईदुनिया से चर्चा के दौरान कहा कि वे एड्स के मरीजों के बीच सालों से काम करती आ रही हैं। वे हर उस मरीज की बहन के रूप में सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहती हैं, जिन्हें समाज और परिवार के लोग बहिष्कृत कर देते हैं।