एक दूसरे के बाल नोंच रहे हैं कांग्रेसी

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। कांग्रेस में शर्मनाक हार के बाद अब तलवारें खिंच गई हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अजय माकन को खुले रूप से हार का जिम्मेदार बताकर तू-तू मैं-मैं वाली स्थिति पैदा कर दी है। हाईकमान को हस्तक्षेप करते हुए युद्ध विराम के लिए कहना पड़ा है, लेकिन यह सच है कि शीला दीक्षित ने जो चिंगारी लगा दी है, वह यहीं थमने वाली नहीं है। आने वाले दिनों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज हो सकता है।

दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित और अजय माकन के कैंप पिछले दस सालों से अलग-अलग हैं। कभी वे दिन भी थे जब शीला दीक्षित माकन को 'बेटा' कहती थीं। अजय माकन शीला की कैबिनेट के प्रभावशाली सदस्य थे, लेकिन बात तब बिगड़ी जब माकन को 2003 की जीत के बाद मंत्री बनाने की बजाय विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद 2004 में लोकसभा चुनाव हुए तो शीला ने नई दिल्ली से जगमोहन के मुकाबले माकन को लड़ाने पर पूरा जोर दिया।

माकन को लगता था कि यह उनके साथ ज्यादती है, क्योंकि तब कोई नहीं जानता था कि माकन जगमोहन को हरा देंगे और हीरो बन जाएंगे। उसके बाद से दिल्ली कांग्रेस में दोनों के अलग-अलग कैंप बन गए। माकन के कैंप में शीला सरकार के दो मंत्री हारून युसूफ और अरविंदर सिंह लवली भी थे। यह माना जाता है कि हाईकमान में जब भी शीला दीक्षित के विकल्प के रूप में किसी नेता का नाम लिया गया तो वह नाम अजय माकन का था। बहुत से लोग मानते हैं कि 2013 के विधानसभा चुनावों में अगर कांग्रेस जीत जाती तो माकन को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता था।

इन दो गुटों की रस्साकशी ही अब खुलकर सामने आई है। शीला दीक्षित चुनाव तो नहीं लड़ना चाहती थीं लेकिन वह चाहती थीं कि उन्हें प्रचार में पूरा महत्व मिले, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान भी कुछ ऐसी बातें कीं जो माकन गुट को रास नहीं आई। उन्होंने कह डाला कि अगर 2013 जैसे हालात बनते हैं तो कांग्रेस आम आदमी पार्टी को समर्थन दे सकती है।

दूसरी बात यह कही कि बिजली के रेट कम नहीं हो सकते जबकि कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कह चुकी थी कि सत्ता में आ गई तो पहले 200 यूनिट के रेट 1.50 रुपये प्रति यूनिट होंगे और उसके बाद के बिल में 50 फीसदी की कटौती की जाएगी। माकन गुट को यह भी आशंका थी कि दिल्ली में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो शीला दीक्षित को पूरी तरह नापसंद करते हैं और अगर उन्हें सामने लाया गया तो वोट बढ़ने की बजाय घट सकते हैं। यह भी डर था कि कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जा सकता है।

दूसरी तरफ शीला दीक्षित के चाहने वाले मानते हैं कि उनका पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया। यही बात अब फूटकर सामने आई है। तभी तो उन्हें कहना पड़ा है कि मुझे माकन पर दया आ रही है। उन्हें प्रचार में आक्रामक होना चाहिए था और लोगों को बताना चाहिए था कि पिछले 15 सालों में कांग्रेस ने दिल्ली के लिए क्या किया। शीला यह भी मानती हैं कि माकन को लाना और लवली का चुनाव न लड़ना कांग्रेस वर्करों को कनफ्यूज करने के लिए काफी था। इसीलिए सब कुछ बिखरा हुआ रहा और कांग्रेस हार गई। शीला दीक्षित कह रही हैं कि वह सोनिया गांधी से मिलेंगी और फिर तय किया जाएगा कि दिल्ली में पार्टी को फिर से कैसे जिंदा किया जाए।

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