समन्वय रतूड़ी/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को मुआवजे देने में देरी के मामले में बुधवार को केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जिन किसानों की जमीन विकास से जुड़ी परियोजनाओं के लिए अनिवार्य नियम के तहत ली गई है, उन्हें मुआवजे की मामूली रकम देने से बचने के लिए सरकार अपीलेट कोर्ट्स में अपील कर रही है, जबकि रिपब्लिक डे परेड जैसे सरकारी समारोहों पर मोटी रकम खर्च करने में इसे कोई झिझक नहीं होती।
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एच एल दत्तू ने कहा, 'आपने किसानों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाया है, लेकिन आप तो वर्षों से किसानों को पेमेंट ही नहीं कर रहे हैं। आप रिपब्लिक डे की परेड पर 100 करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं, लेकिन जब गरीब किसानों को 10 या 20 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की बात आती है तो आप अपील फाइल करने लगते हैं।'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अरुण मिश्रा के साथ बैठे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दत्तू ने यह बात डिफेंस मिनिस्ट्री की ओर से दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कही। दिल्ली हाई कोर्ट ने मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह दिल्ली छावनी इलाके में किसानों से ली गई जमीन के बदले उन्हें मुआवजे की रकम का भुगतान करे। मंत्रालय ने मुआवजे की रकम पर ऐतराज जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं।
जस्टिस दत्तू ने कहा, 'आप कहते हैं कि लंबित मामलों की संख्या घटाने के लिए आपने एक नैशनल लिटिगेशन पॉलिसी बनाई है। इसमें आप बेमतलब के मामलों और अपीलों को फाइल किए जाने से बचने की बात करते हैं, लेकिन ऐसे भी मामले हैं, जब आर्म्ड फोर्सेज टाइब्यूनल ने आपको निर्देश दिया कि आप रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन बेनेफिट्स का पेमेंट करें, तो आपने उसका पालन नहीं किया। हमें 900 पेंशनर्स के खिलाफ दाखिल आपकी याचिकाएं खारिज करनी पड़ी थीं। इसी तरह आप अपीलें करते रहते हैं।'
डिफेंस मिनिस्ट्री की ओर से सीनियर लॉयर जयदीप गुप्ता दलीलें पेश कर रहे थे। चीफ जस्टिस दत्तू यहीं नहीं रुके। उन्होंने डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल, नैशनल ग्रीन टाईब्यूनल, आईटीएटी और कॉम्पैट जैसे दर्जनों ट्राईब्यूनल बनाने और उनके लिए पर्याप्त मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे का इंतजाम न करने के लिए भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया।
जस्टिस दत्तू ने कहा, 'ट्राईब्यूनल के सदस्यों को आवास तक मुहैया नहीं कराया गया है। ट्राइब्यूनल्स कैसे काम करें, जब कोई इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। आपने ट्राइब्यूनल्स के हेड्स को कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज (यमुना के जलभराव वाले इलाके में) में आवास दिया है। ऐसा भेदभाव आप क्यों कर रहे हैं?'
कोर्ट ने कहा, 'एक मामले में तो सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज को ट्राइब्यूनल का हेड तो बनाया गया, लेकिन उन्हें न तो उचित आवास दिया गया और न ही इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराया गया। डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल्स फ्लैट्स से काम कर रहे हैं। पहले इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कीजिए, फिर ट्राइब्यूनल्स बनाइए ताकि काम ठीक से हो सके।'